कुल पृष्ठ दर्शन : 144

You are currently viewing संतोषी रहता सदा सुखी

संतोषी रहता सदा सुखी

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
*********************************************

हममें से अधिकांश ने १६ सुखों के बारे में सुन रखा है।हालांकि, आज के समय में ये सभी सुख हर किसी को मिलना मुश्किल है लेकिन इनमें से जितने भी सुख मिलें, उतने से ही खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए। हमारे वरिष्ठों ने हमें सिखाया भी है- ‘सन्तोषी सदा सुखी’।
१६ सुख इस प्रकार वर्णित हैं-
पहला सुख निरोगी काया,
दूजा सुख घर में हो माया, तीजा सुख कुलवंती नारी,
चौथा सुख सुत आज्ञाकारी,
पाँचवा सुख सदन हो अपना,
छठा सुख सिर कोई ऋण ना,
सातवाँ सुख चले व्यापारा,
आठवाँ सुख हो सबका प्यारा,
नौवाँ सुख भाई और बहन हो,
दसवाँ सुख न बैरी स्वजन हो, ग्यारहवाँ मित्र हितैषी सच्चा,
बारहवाँ सुख पड़ौसी अच्छा,
तेरहवां सुख उत्तम हो शिक्षा,
चौदहवाँ सुख सद्गुरु से दीक्षा, पंद्रहवाँ सुख हो साधु समागम और सोलहवां सुख संतोष बसे मन।
‘सोलह सुख ये होते भाविक जन।
जो पावैं सोइ धन्य हो जीवन॥’
हम सभी मानते हैं कि, उपरोक्त सुख किसी को मिलते ही नहीं, क्योंकि सुख और दुख तो शाश्वत हैं। अतः यही निवेदन कि सन्तोषी बनें, विषम परिस्थितियों में भी बिना विचलित हुए विवेकपूर्ण तरीके से देश के प्रति अपने दायित्व निभाते रहें। ध्यान रखें कि, हमें एक जिम्मेदार नागरिक ही नहीं बनना है, बल्कि औरों को भी जाग्रत करते रहना है।
निवेदन कि, एक अलग तरह के परमसुख का अनुभव करने के लिए वृहदारण्यक उपनिषद् में लिखे श्लोक अनुसार सभी की मंगल की कामना करते रहें-
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्॥’

यानि सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।