बबीता प्रजापति
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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है अलबेली साँझ निराली,
झूम उठी है डाली डाली
जगमग हो, चंदा गगन में डोले,
सूर्य हो अस्त, चन्द्र नैना खोले।
तारे जैसे निद्रा से जाग उठे,
सांझ ढले और नभ में नाच उठे
रक्ताभ आभा लिए अम्बर की सजनी लजा रही,
ओढ़ बादलों का घूँघट, खुद को जैसे सजा रही।
खग जैसे साँझ में सुर मिलाने लगे,
घर लौटने से पहले मिलकर गीत गाने लगे
मंदिरों में गूँज उठे शंख और घण्टियाँ,
चहुँ दिशि गूँज उठी ठाकुर प्रियाजू की आरतियाँ।
देख विविध पकवान रसोई के
बालक वृन्द मुस्काने लगे,
आँचल पकड़ माता का
पकवानों को ललचाने लगे।
तुलसी के क्यारे में सांझ के दीप जगमगाने लगे,
नाम हरि बिट्ठल का लेकर
हृदय में आनन्द बढ़ाने लगे॥