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करता जो सब अर्पण

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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शिक्षक समाज का दर्पण…

राष्ट्र निर्माण की खातिर करता, अपना जो सब कुछ अर्पण
और नहीं वह दूजा कोई, वह है, शिक्षक समाज का दर्पण।

युगों-युगों से इसी ने ही तो, जग को दिखाई नयी-नयी राहें हैं
जितने भी महान हुए हैं जग में, सब इसी ने ही तो पढ़ाए हैं।

कौन भूलेगा चाणक्य नीति, और १९१७ की रूसी क्रांति को ?
क्यों देने चले हो चुनौती आज तुम, एक शिक्षक की शान्ति को ?

जलता दीपक जल जग को कर रौशन, भस्मीभूत हो जाता है
त्यूं रख नैपथ्य में खुद को शिक्षक, शिष्य को ही आगे लाता है।

संसार की सहूलियतें छोड़ बेचारा, खज़ाना ज्ञान का बेच रहा है
इसी लिए तो खुदगर्जों के आगे, विवश होकर घुटने टेक रहा है।

आज जो देता समाज में शिक्षक को, नित-नित नयी-नयी गाली है
दुधमुँहा बच्चा है वह नौसिखिया, उसने, बुद्धि कहाँ संभाली है ?

मुँह पर सुन कर भी सब सह जाना, यही शिक्षक का समर्पण है।
औकात दिखा देता जब अपनी पे आए, ‘शिक्षक समाज का दर्पण’ है॥