जी.एल. जैन
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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एक पागल के
स्वस्थ्य होने पर,
परीक्षक ने
परीक्षण के तौर पर,
किए कुछ सवाल
ताकि पता लग जाए
कैसा है मरीज़ का हाल!
परीक्षक ने
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा-
आप तो
काफी समझदार,
नगर के जाने-माने
प्रसिद्ध नेता हैं
फिर कैसे आ गए
इस लपेटे में ?
आखिर कौन-सी ऐसी बात थी,
जिसके कारण
आपका संतुलन खो गया!
आपका दिमाग अपसेट हो गया!
तब नेता जी कहा-
क्या बतलाएं यार!
मैं तो ईमानदारी से करता था,
अपना
बेईमानी का कारोबार
मेरे एक मित्र हैं साहित्यकार,
उन्होंने मुझ पर
काफी दबाव डाला,
और कहा एक कवि गोष्ठी में चलना है
जिसमें बाहर एवं नगर के
बहुत बड़े-बड़े कवि आए हैं,
आज उन्हें सुनने का मौका मिलेगा
सुंदर-सुंदर कविताएं सुनकर,
दिल की वीरान बगिया का
गुलशन खिलेगा।
उनकी बातों में आकर,
दे दी मैंने स्वीकृति
अटैंड कर ली कवि गोष्ठी
वहाँ पर
काफी मेला-सा लगा था,
सारा हाल कवियों से खचा-खच भरा था
सिर्फ मैं ही एक श्रोता था,
रात्रि के अंतिम पहर तक
हरेक कवि ने,
मुझे ही लक्ष्य करके
कविताएं सुनाई
बस एक और… बस एक और…
यह आखिरी है कहकर,
मेरे रोम-रोम में पिलाई
न थी मुझे उठकर जाने की इजाजत,
न ही मैं कर सकता था
कवियों से बगावत
बड़ी मुश्किल से,
बैरियों ने प्रातः आठ बजे छोड़ा
तभी से मेरे मस्तिष्क में
ऐसा लगने लगा,
जैसे किसी ने मेरे सर पे चलाया हो हथौड़ा।
वो समझते थे,
मैं साहित्य प्रेमी हूँ मशहूर
पर मैं ‘वाह-वाह’
करते-करते हो गया चकनाचूर,
और घर आते ही
अंड-संड बकने लगा,
हर बात कविता में करने लगा
बड़े-बड़े कवियों और शायरों के
पन्ने फाड़-फाड़,
उनमें अपना नाम मढ़ने लगा
यही है मेरी कहानी,
कुटे-पिटे पागल कहलाए
मुहल्ले वालों ने पत्थर बरसाए,
भोगी परेशानी।
कवि बनने के लिए सिर्फ सहना पड़ता है,
तप-तपकर कुंदन-सा दमकना पड़ता है।
लेखनी में आते हैं कई सूर्य और चन्द्र ग्रहण,
औरों का दर्द हो अपना, पागल होना पड़ता है॥