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क्यों मार नहीं पाता अंदर के रावण को!

डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
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हर साल मनाते हैं हम दशहरा,
रावण के पुतले को जलाकर।

बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक,
राम के बाणों ने साधा था निशाना सटीक।

क्यों खुश हो जाते हैं हर बार,
ऊँचे भव्य रावण का पुतला जलाकर।

क्यों मार नहीं पाता इंसान,
अपने अंदर के रावण को!

हिंसा, द्वेष, कलह, अत्याचार को,
अपने मुखौटे में क्यों छुपा रखते हैं ?

जब तक ये सब खत्म न होगा,
तब तक रावण का वध होता रहेगा।

अपने अंतर्मन को पुनः टटोलना होगा,
दंभ, ईर्ष्या, राक्षस प्रवृत्ति से खुद को उबारना होगा।

कलयुग में अब कोई राम नहीं आएंगे,
फिर से राम राज स्थापित नहीं कर पाएंगे।

जलाकर पुतले को हर बार हालात सुधर न पाएंगे,
राख कर दो अंदर की बुराईयों को, द्वंद सब मिट जाएंगे।

कठिन परीक्षा से गुजरकर शायद एक दिन,
फिर से कोई राम बन पाएंगे, और पुतले नहीं जलाएंगे॥

परिचय- शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक (अंग्रेजी) के रूप में कार्यरत डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती वर्तमान में छतीसगढ़ राज्य के बिलासपुर में निवासरत हैं। आपने प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर एवं माध्यमिक शिक्षा भोपाल से प्राप्त की है। भोपाल से ही स्नातक और रायपुर से स्नातकोत्तर करके गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (बिलासपुर) से पीएच-डी. की उपाधि पाई है। अंग्रेजी साहित्य में लिखने वाले भारतीय लेखकों पर डाॅ. चक्रवर्ती ने विशेष रूप से शोध पत्र लिखे व अध्ययन किया है। २०१५ से अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय (बिलासपुर) में अनुसंधान पर्यवेक्षक के रूप में कार्यरत हैं। ४ शोधकर्ता इनके मार्गदर्शन में कार्य कर रहे हैं। करीब ३४ वर्ष से शिक्षा कार्य से जुडी डॉ. चक्रवर्ती के शोध-पत्र (अनेक विषय) एवं लेख अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय पत्रिकाओं और पुस्तकों में प्रकाशित हुए हैं। आपकी रुचि का क्षेत्र-हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला में कविता लेखन, पाठ, लघु कहानी लेखन, मूल उद्धरण लिखना, कहानी सुनाना है। विविध कलाओं में पारंगत डॉ. चक्रवर्ती शैक्षणिक गतिविधियों के लिए कई संस्थाओं में सक्रिय सदस्य हैं तो सामाजिक गतिविधियों के लिए रोटरी इंटरनेशनल आदि में सक्रिय सदस्य हैं।