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गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध’ पुस्तक पर हुई रोचक चर्चा

देहरादून (उत्तराखंड)।

फुलवारी में वर्षान्त की पुस्तक चर्चा में लेखक और शिक्षाविद् देवेश जोशी की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध’ पर हुई चर्चा में जिज्ञासा और रोचकता का संगम रहा। चर्चा में पूर्व पुलिस महानिदेशक और साहित्यकार अनिल रतूड़ी, लेखक और उत्तराखंड शासन में अपर सचिव ललित मोहन रयाल ने मुख्य रूप से भाग लिया।
चर्चा की भूमिका बनाते हुए श्री रतूड़ी ने कहा कि प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व भारत में ही नहीं, ब्रिटिश सेना के भीतर भी गढ़वालियों की कोई विशेष पहचान नहीं थी। इस युद्ध ने ही गढ़वालियों को विश्व व्यापी पहचान दिलाई। चर्चा से पुस्तक में वर्णित और उल्लिखित महत्वपूर्ण तथ्य उभर कर आए कि गढ़वाल राइफल के दरबान सिंह नेगी और गब्बर सिंह नेगी जैसे सेनानियों ने अपने शौर्य और पराक्रम से कीर्तिमान स्थापित किए। लेखिका डॉ. सुधा पांडे ने कहा कि यह पुस्तक आधुनिक महाभारत कहे जाने वाले प्रथम विश्व युद्ध के विषय में गढ़‌वाली सैनिकों के बलिदानों की अमर गाथा है।
श्री रयाल ने कहा कि श्री जोशी ने पुस्तक में प्रामाणिक सामग्री प्रस्तुत की है। विश्व युद्ध में गढ़वाली सैनिकों का अनुपात सबसे अधिक रहा। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या हमारे जन नायकों ने युद्ध में भाग लेने के लिए लोगों को प्रेरित किया, उत्तर देते हुए जोशी जी ने कहा कि यहाँ के जन नायकों की कोई भूमिका नहीं रही, बल्कि गढ़वाल के लोग गुस्से में, स्वतः स्फूर्त होकर युद्ध में गए थे। श्री जोशी ने पुस्तक लिखने में प्रयुक्त स्रोतों का विस्तृत उल्लेख किया। लेखिका डॉ. विद्या सिंह, कवि शिवमोहन सिंह व शीशपाल सिंह गोसाई ने भी चर्चा में भाग लिया।
प्रारंभ में मुख्य सचिव (उत्तराखंड शासन) श्रीमती राधा रतूड़ी ने देवेश जोशी और श्री रयाल का संक्षिप्त परिचय दिया और सम्मान किया।

इस अवसर पर श्रीमती रुचि स्याल, डॉली डबराल, डॉ. सुशील उपाध्याय, शिशिर प्रशांत व प्रकाश थपलियाल आदि लेखक उपस्थित रहे।