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चीत्कार चहुँ गूँज

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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अफ़रा-तफ़री मची हुई है चीत्कार चहुँ गूंज रही है,
कृत्रिमता का असंवेदित मन लापरवाही झूम रही है।
हालाहल बन मौत सर्पिणी, बेगुनाह पे लगे ठहाके-
मरी वेदना बेदर्दी दब, कुपित अदालत गरज रही है॥

गज़ब दास्ताँ हैवानों की, हमदर्दी भी बिलख रही है,
कराहती सरकार व्यवस्था, लाचारी भी बिदक रही है।
मानवता की कहाँ जगह अब, सहानुभूति ख़ुद बेसहारे-
अपनापन रिश्तों की ज़न्नत, ख़ुद अपने को खोज़ रही है॥

अज़ब नशा है दौलत दुनिया, इन्सानों को कुचल रही है,
अय्याशी लाचार मुसीबत, बनी मौत बन मचल रही है।
मान ख़ुदा बंदे जो ख़ुद को, बदल खून पर्ची मुस्काते-
बेरहमी भी गज़ब नज़ारे, बेशर्मी भी फफक रही है॥

बेजुबां आज अवदशा चरम, चिकित्सा चीत्कार रही है,
नवांकुरित शिशु खिली बागवां, दावानल में झुलस रही है।
अस्पताल उद्योग क्रीड़ाओं, अनधिकार चालित संस्थाएँ-
दानवीय शैतान ताकतें, निडर मौत बन दमक रही हैं॥

कब तक आख़िर मौन प्रशासन, चीत्कारें बस पूछ रही है,
अब जागो कुम्भकर्णी सत्ता, सहनशीलता चीख रही है।
पचहत्तर आजाद वतन पा, नित दरिंदगी ख़ुद शर्माते-
बलिदानों की अमर कथा भी, आत्मव्यथा खुद लिख रही है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥