बबीता प्रजापति
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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हृदय में यदि,
समर्पण हो
जीवन बस एक को,
अर्पण हो
तभी प्रेम करना।
हृदय ज़ब अनुरागी हो,
सुख-दु:ख में सहभागी हो
जग से बस बैरागी हो,
तभी प्रेम करना।
बिन देखे व्याकुल हो नैना,
जैसे जल बिन मीन रहे न
एक-एक घड़ी,
युगों-सी लगना
तभी प्रेम करना।
प्रेम में फिर,
कवि हो जाना
विरह जो हो तो रो जाना।
सजल हो उठे विरह में नैना,
तभी प्रेम करना॥