दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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लाल रंग का एक भुरभुरा पदार्थ,
इसमें छिपा रहता स्त्री का हितार्थ।
अपनी मांग में स्त्रियाँ इसे भरती हैं,
पतिदेव रहे सलामत, लम्बी उम्र की कामना वो करती हैं।
सिंदूर होता ही है इतना ताकतवर,
पराए को पल में बना देता दिलवर।
अपने हो जाते हैं पल में ही तो पराए,
अपना सब-कुछ तज दूसरे संग जाए।
ये सिंदूर होता ही है इतना करामाती,
पल में बदल देता है औरत की जाति।
यहाँ तक कि कभी बदल जाता धरम भी,
और तो बदल जाते उसके करम भी।
एक लड़की पल में बन जाती औरत,
गृहस्थी बसाने का मिल जाता लाईसेंस।
हो जाती है वो जन्म देने वाले से दूर,
दूसरे घर जाना पड़ता हो के मजबूर।
वो समझी जाने लगती है किसी की,
गलत नज़र नहीं है पड़ती किसी की।
शादीशुदा होने की ये एक निशानी है,
पर आजकल तो हो रही मनमानी है।
शादी के वक्त मर्द, औरत की मांग भरे,
फिर तो जीवनभर औरत स्वयं है भरे।
माता सीता से सुना जब श्री हनुमान ने,
सिंदूर से उम्र बढ़ती है, प्रभु श्रीराम ने।
उन्होंने सारे बदन में सिंदूर लगा लिया,
सीता से अमरत्व का वरदान पा लिया।
इसलिए तो हनुमान जी को सिंदूर चढ़े,
सिंदूर लगा कर ‘दीनेश’ हनुमान चालीसा पढ़े॥
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।