ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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दोहा आधारित ग़ज़ल…
दरपन निरख-निरख लटे, साजते बार-बार।
एक बार देखा नहीं, निज आचार विचार॥
दर्पण जैसा स्वच्छ हो, जीवन का हर काम।
धब्बे लगे न काँच में, मुख होगा अँधियार॥
सत्य सदा दिखला नहीं, दर्पण बनना छोड़।
तोड़ हृदय न काँच-सा, रोको मन पुचकार॥
दर्पण दिखलाता हमें, अति दूर की वस्तु।
दृष्टि दूरदर्शी बने, मन का कर विस्तार॥
दर्पण कभी न रोकता, देता नहीं सलाह।
आहार करो स्वरूचि से, बढे़ न तन का भार॥
मत उपहास कभी करो, रखो बात का मान।
आदर दे कर और को, स्वयं मिले सत्कार॥
दर्पण देखे सामने, दिखता न पृष्ठ भाग।
दर्पण झूठ न बोलता, यह बात निराधार॥
कुछ कम उजले कक्ष में, हम दिखे छवि समान।
आता दरपन सामने, कितने रूप उभार॥
चटका तो नहिं जूड़ता, हृदय का यही हाल।
कोमल पर कठोर तल, जतन करो यह सार॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।