विजय कुमार तिवारी
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समीक्षा करते समय केवल सारांश प्रस्तुत करना सम्यक नहीं है। रचना के पात्रों की परिस्थितियाँ, उनके संघर्ष,उनकी संभावनाएं,सुख-दु:ख,रचनाकार की प्रतिबद्धता और समझ सब तो परिदृश्य में उभरते ही हैं। लेखक की संघर्ष-चेतना,प्रतिबद्धता, भाषा और शैली के संस्कार उभरने ही चाहिए।
हिन्दी साहित्य में प्रवासी भारतीयों ने कम योगदान नहीं किया है और विदेशी भूमियों पर रहते हुए साहित्य को,नाना विधाओं से समृद्ध कर रहे हैं। ऐसी ही प्रतिबद्ध और समर्पित प्रवासी भारतीय लेखिका हैं डॉ. अनिता कपूर,जो कैलीफोर्निया (अमेरिका) में रहते हुए सतत लेखन-सृजन में लगी हैं। ‘धूप की मछलियाँ’ उनकी लघुकथाओं का संग्रह अच्छा लग रहा है। उनकी भावनाओं,संवेदनाओं और सुखद जीवन की उड़ान देखकर डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी ने उनके लिए शुभकामना संदेश लिखा है,-“वस्तुतः हिन्दी साहित्य में सार्थक कार्यों की महती परम्पराओं द्वारा पाठकों में उचित सन्देश प्रेषित करती लघुकथाओं का यह संग्रह ‘धूप की मछलियाँ’ सामयिक पाठक पीढ़ी के लिए सत्प्रेरणादायक सिद्ध हो सकता है,जो अभिनंदनीय है।” भूमिका के तौर पर डॉ. कपूर ने ‘कहानी लिखना एक कला है’ शीर्षक से अपना मन्तव्य लिखा है-“वह यानी लेखक अपनी कल्पना और वर्णन शक्ति से कहानी के कथानक,पात्र या वातावरण को प्रभावशाली बना देता है।— लेखक की भाषा-शैली पर बहुत कुछ निर्भर करता है। —आज की कहानी व्यक्तिवादी है जो व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक सत्य का उद्घाटन करती है।—लघुकथा आसान विधा नहीं है।” इतना अवश्य है कि डॉ. कपूर ने अमेरिकी धरती से भारत को,यहाँ के पात्रों को और उनके जीवन संघर्षों को देखा है, अनुभव किया है और हमारे लिए संजोया है। ये पात्र विदेशों में बस गए हैं या रह रहे हैं। इस संग्रह में कुल ३० लघुकथाएं संग्रहित हुई हैं। उनके इस पुनीत कार्य के लिए बधाई देता हूँ।
डॉ. कपूर की कहानियाँ सीधी-सपाट भाषा में लिखी गई हैं। अपनी कहानियों में डॉ.कपूर ने अपने अनुभूत या आसपास के समाज में घटित सत्य को उजागर किया है। शीर्षक रचनाकार की भीतरी तड़प को दर्शाता है। मछलियों का पानी से बाहर जीवित रहना संभव नहीं है,शीघ्र ही उनका प्राणान्त हो जाता है। वैसे ही अपनों के सम्बन्धों से बाहर किसी का भी जीवन सहज नहीं रह जाता। उनकी कहानियाँ अनुभवों पर आधारित हैं,इसलिए कथ्य-कथानक प्रभावित करते हैं और सोचने पर मजबूर करते हैं। भाषा-शैली अनुकूल है,भाव-संवेदनाएं खूब अभिव्यक्त हुई हैं। कहीं-कहीं व्यंग्यात्मक भाव भी उभरे हैं। रिश्तों की पड़ताल हर रचना में हुई है,यह शायद उनकी मूल अनुभूति और चिन्तन है। निश्चित ही पाठक उनके अनुभवों से सीखेंगे और जीवन के ऐसे विचलनों से बचेंगे।
( सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)