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नई राह दिखाते

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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कल्पनाओं के हम उड़नखटोले,
शब्दों के विशाल नीलाभ बनाते
अन्तस्तल अनुभूति निनाद भाव को,
चासनी नवरस सुन्दर काव्य बनाते।

देश काल परिधि और पात्र विघटित,
बन दर्पण सामाजिक दृश्य सजाते
सार्वजनिक घटी गतिविधियाँ समेट,
युगों नवागत नई राह दिखाते।

रच लेख मनोहर ललित कलित चारु,
शौर्य,शील,त्याग संंबल यश गाते
गुणातीत प्रकृति वर्णिता धरा विशद,
ममता स्नेह दया रस लेप लगाते।

काव्यशास्त्रीय अनुशासन साहित्यिक,
अलंकार रीति रस गुण ध्वनि पाते
कवि चित्त लिप्त संवेदना सीदित,
कालजयी कीर्ति साहित्य बनाते।

साहित्य जगत खिलाड़ी चिरकालिक,
दूरदर्शी प्रेरक कर्त्तव्य निभाते
बंदी चारण धावक बन शासक,
चहुँ अरुणाभ सुकीर्ति प्रमुदित गाते।

साहित्य अतीत वर्तमान भविष्य,
भविष्यत समाज दर्पण बन जाते
नव निर्माण प्रगति सावधान विपद,
कुमार्गपथिक राह सत्य दिखलाते।

हम दृष्टा श्रोता निरीक्षक लेखक,
नित चरित्रनिर्माणक जगत होते
युग निर्धारक विश्व हम संचेतक,
साहित्य के खिलाड़ी सदा रहते।

गद्य पद्य विविध रचित साहित्य प्रविधि,
वेद रामायण पुराण महाभारत होते।
बाईबिल कुरआन गुरुग्रन्थ विहित,
पृष्ठ भाषा सहस्र हैं इठलाते॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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