राधा गोयल
नई दिल्ली
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तेरे पास बहुत पैसा है, तू भवन बनाना चाहता है,
अपनी शान-ओ-शौकत की सब पर धाक जमाना चाहता है।
सोचो कि मजदूर बिना किस तरह भवन बना पाएगा ?
शिल्पकार भी श्रमिक बिना, निर्माण नहीं कर पाएगा।
अट्टालिकाएँ, मन्दिर, मस्जिद और सुन्दर महल,शिवाले,
श्रमिकों के सहयोग से ही ये काम हैं होने वाले।
माना कि मजदूर को भी पैसे की बहुत जरूरत है,
भवन बनाने की खातिर तुझको भी उसकी जरूरत है।
तुझको भी उसकी जरूरत है, उसको भी तेरी जरूरत है,
हर निर्माण कार्य में, सबको श्रमिकों की जरूरत है।
वह तेरी जरूरत पूरी करे, तू उसकी जरूरत पूरी कर,
पूरा सम्मान उसे देकर, ये भेदभाव की दूरी भर।
जिस दिन ऐसा सोचेगा, जीवन खुशियों से भर जाएगा,
श्रमसाधक के जीवन में एक नया उजाला आएगा॥