सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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पुलकित मन गोरी,
घर आए साजन
बजती है लाल-पीली,
चूड़ियाँ खन-खन।
पैरों में छमक रही,
पायल छम-छम
दमक रही माथे की,
बिंदिया दम-दम।
खुल-खुल-खुल पड़ते हैं,
सुमन-सुधा भर
हरसिंगार झरते हैं,
झर-झर-झर-झर।
सकुच सलज सजनी,
मन भाये संगीत
गूँजता है उर में,
एक नूतन-सा गीत।
इन्द्रधनुष बुनते हैं,
नभ में नौ रंग।
सजनी को भाये है,
साजन का संग॥