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प्रेम-मेंहदी के रंग

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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सजी गौरी के हाथों की
लाली मेंहदी,
पिया की तन्यमयता में
डयोरी खड़ी-खड़ी
मृगनयनी तिरझी कजरारी,
निहारिका-सी बखुलाई
चाँदनी की दुहाई में।
गहरी होती गई…

आशिकी बनी प्रेम पपीहा,
सावन भादों की उफनाई
ताल-तलैया के,
उदंड प्रवाह में इस
कद्र बेवफाई असहनीय,
और नहीं तो क्या ?
दिल स्फुटित हो मचलने लगा,
तकिए की नोंच-खसोट
बेपनाह अफजाई में।
गहरी होती गई…

उस निर्दयी बलम को,
क्या है समझ ?
नादान है प्रेम की गली
सूनी पड़ी है,
काली घटा की चादर ओढ़
काल बेकाल हो,
घूम रहा किसी की अलसाई
और अंगड़ाई भरती,
अकेली पुष्प सजी रंगीन
नीरव रात्रि में।
गहरी होती गई…

चोंट लगती है जख़्म-ऐ-
दर्द की तन्हाई से,
रूबाईयाँ छूटती हैं
होंठों की सुर्ख लाल गुलाबी,
गालों पे ढुलकते अश्रु
बूंदों की गरमाई से,
यूँ दिल की पिघलती रूहाई
की तरूवर तरूनाई में।
गहरी होती गई…

खूब धूम मची है,
दसों दिशाएं राग-रागिनी
की मधुरिम संगीताई से
हिलोरे खाती मस्त पवन,
झोंकों में इस तरह
गुमसुम प्रेमी की,
परछाई से छुपे रूस्तम
में प्रेम दिवानगी बनी,
प्रीत पराई अगुआई की।
भंवर-भंवराई में,
गहरी होती गई…॥

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।