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फाल्गुनी हवा

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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फाल्गुनी हवा-सी,
तुम्हारी स्मृतियों की शीतलता
कर देती है मन शीतल,
तुम्हारी उन्मुक्त हँसी
भर देती है वादियों की,
खाली झोलियाँ।

फूलों के उदास चेहरों पर,
ठहर जाती है
ओस की नन्हीं-नन्हीं बूंदें,
झूमती लताओं की रुनझुन
बजने लगती हैं पायल,
बादलों की ओट से
झांकती धूप की दुल्हन।

पंछियों की चहचहाहट,
बजाती हैं शहनाईयाँ
भँवरों ने भी छेड़ दी है,
सरगम की स्वरलहरी
वृक्षों की कतारों ने,
तान दी है रास्तों में कनातें
बिखरे हैं रास्तों में,
पलाश के फूलों का
रेड कार्पेट।

धड़कनों ने सुनी है,
तुम्हारे क़दमों की पदचाप।
फाल्गुनी रंगों की,
ओढ़ कर चुनर
तुम भी आ जाओ प्रिय!!

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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