हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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गाँधी जयंती (२ अक्टूबर) विशेष…
सत्य की राह पर जब कोई मनुष्य चलता है, तो स्वाभाविक है कष्ट तकलीफ़ व परेशानी होती है पर जो सच्ची राह पर चलता है, वह इन छोटी-मोटी चीजों से बड़ी सीख लेकर आगे बढ़ जाता है। वकील मोहनदास करमचंद गांधी अपने-आपमें सशक्त अभिव्यक्ति के धनी थे। पढ़े-लिखे समाज के लिए उस जमाने में ऐशो-आराम से जीवन यापन कर सकते थे, लेकिन भारतीय होने के नाते जो संस्कार परम्परा, वैचारिक मंथन हर एक व्यक्ति के मन में चलता है, वही उस व्यक्ति की अभिव्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में मील का पत्थर साबित होता है। महात्मा गांधी को विदेश में बहुत यातनाएं सहनी पड़ी, जब रंगभेद विरोधी लोग गोरे व काले बोलते थे, तो वह संयम व समन्वय के साथ भारतीय होने के विषय में कभी पीछे नहीं हटे। हमेशा सबसे पहले भारतीय लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी जानते हुए विदेशी धरती से बहुत कुछ सीख कर जब भारत आए तो यहाँ के हालत गंभीर व चिंतनीय थे। उन्होंने गाँव, किसान, गरीब, वंचित वर्ग व शोषितों की आवाज उठाना ही सही समझा। सत्य को सारथी बना कर अहिंसा पंथ पर अंग्रेजी हुकूमत की नींव को हिलाने वाले वो मोहनदास करमचंद गांधी अब अपने देश भारत में महात्मा गांधी कहलाए।उन्होंने उस समय बहुत बारीकी से अध्ययन किया और फिर अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई तो गोरे हैरानी में आ गए। इतने पढ़े-लिखे आदमी, जो बहुत बड़े अफसर बन सकते थे, इतनी उपाधि के बाद भी वह यहाँ इन कमजोर-गरीब लोगों की बात कर रहा है और अब आजादी का बिगुल बजा रहा है। ऐसा व्यक्ति बहुत ख़तरनाक है अंग्रेजी हुकूमत के लिए। महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और अंग्रेजों भारत छोड़ो जैसे इतने आंदोलन उस समय उन्होंने किए कि अंग्रेज सरकार परेशान हो गई। महात्मा गांधी भारत भूमि के मुक्ति पुरुष बन देश के लिए आगे बढ़ते रहे और स्वतंत्रता की लड़ाई में वह शांति अहिंसा की बात करते थे। तभी तो उन्हें ‘शांति का दूत’ कहा जाता है। अहिंसा पंथ पर देश के लिए प्यारे बापू ने जो भी फर्ज निभाया, वह आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने भारतीय होने का जो फ़र्ज़ निभाया, उसे हम सभी को अपने अंतर्मन में धरण करना चाहिए। सबसे पहले राष्ट्र हो, उसके बाद सब-कुछ, क्योंकि राष्ट्रभक्ति व सामाजिक समरसता हमारे भारतीय होने की पहचान भी है और मनुष्य होने का कर्त्तव्य भी, तो हम इससे दूर नहीं जाएं। तभी गांधी जयंती मनाने की सार्थकता सिद्ध होगी। स्वच्छ, सुंदर, विकसित राष्ट्र और आगे बढ़ते भारत में जहां विश्व कल्याण के भाव से ओत-प्रोत संस्मरण आज भी जीवित है, यही इसकी महानता है। तभी तो विश्व पटल पर सिरमौर भारत दुनिया में आपने पैरों पर खड़ा होकर पूरी दुनिया में तिरंगे को लहरा रहा है। जिन सभी कर्तव्य को मातृभूमि के लिए हमारे प्यारे बापू ने पूर्ण रूप से किया, उन संस्मरणों एवं राष्ट्र धर्म के भाव से हम सभी को बहुत कुछ सीखना होगा। कितनी भी आंधी आई, पर वह एक सैनिक की तरह लक्ष्य को साधते हुए खड़े रहे, तभी तो आज अमन, खुशहाली व शांति है। आज हमारा यह गुलशन आजाद है तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दिव्य दृष्टि के कारण। वैचारिक मंथन से उत्पन्न एकजुटता, भाईचारा और सबको साथ में लेकर चलने के प्रयासों से भारत गांधी जी के सकारात्मक सिद्धांत को नहीं भूलेगा।