जनभाषा में न्याय का संघर्ष…
मुम्बई (महाराष्ट्र)।
सरकारी मुकदमों का संचालन करने इसलिए नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि वे भारत संघ की राजभाषा हिंदी में वकालत करते हैं। महाधिवक्ता (बिहार) पी.के. शाही के अधीनस्थ विधि पदाधिकारी इंद्रदेव प्रसाद ने उनके विरुद्ध मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (पटना) के न्यायालय में अपराधिक परिवाद पत्र संख्या ७१४१ /२०२४ दाखिल किया है, जो धारा १५३, १५३ (क), १५३ (ख), १६६, १८६, १८७, १८८, ४६९, ४७७ (क), ५०४, ५०५ (१) (ख), ५०५ (२), ११९, १२० (बी) भारतीय दंड विधान एवं राष्ट्रीय ध्वज अपमान निवारण अधिनियम १९७१ की धारा २ के अंतर्गत है ।
अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद के अनुसार यह मामला इसलिए बनता प्रतीत होता है, क्योंकि उस परिवाद-पत्र में उनकी व्यथा यह है कि, उनकी नियुक्ति विधि पदाधिकारी के पद पर सरकारी मुकदमों का संचालन करने के लिए हुई है। उनको सरकारी मुकदमों का संचालन करने इसलिए नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि वे भारत संघ की राजभाषा हिंदी में वकालत करते हैं, जिसका निवारण सीडब्लूजेसी संख्या १७५४२/२०१८ में पारित उच्च न्यायालय (पटना) का आदेश दिनांक १६/४/२४ से हो गया था, जिसकी जानकारी प्राप्त करते ही विद्वान महाधिवक्ता श्री शाही ने उनके नाम से आवंटित कुर्सी टेबल को हटवा दिया। भारत संघ की राजभाषा हिंदी के विकास को रोकने के लिए गुंडागर्दी करवाई, जिससे हिंदी वर्गों एवं अंग्रेजी वर्गों के बीच शत्रुता, घृणा, दुश्मनी फैल रही है और राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिसे छुपा कर बिहार सरकार और पटना उच्च न्यायालय को गलत सुझाव महाधिवक्ता दे रहे हैं, जिसके लिए उनके विरुद्ध उच्च न्यायालय (पटना) द्वारा पारित आदेश दिनांक १८/४/२४ के आलोक में ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस १/२०२४ दर्ज हो गया है, जिसकी जानकारी प्राप्त करते ही वे कूटरचित साक्ष्य का मिथ्या प्रविष्टि का दुष्प्रेरण करने लगे हैं, इसलिए उनके विरुद्ध उक्त १/२०२४ के अतिरिक्त कोतवाली थाना में एफआईआर दर्ज होना बहुत जरूरी है।
अधिवक्ता के अनुसार कोतवाली थाना में एफआईआर दर्ज करने के लिए लिखित आवेदन पड़ा है, किंतु उसकी पावती नहीं मिली है। कोतवाली थाना से पावती नहीं मिलने की लिखित शिकायत वर्गीय पुलिस अधीक्षक पटना से हुई है। फिर भी एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, इसलिए विद्वान मुख्य न्यायक दंडाधिकारी के न्यायालय में उपरोक्त अपराधिक परिवाद संख्या ७१४१/२०२४ दाखिल हुआ है, जिसकी सुनवाई तारीख १८/६/२०२४ को निश्चित हुई है।
यहाँ ध्यान देने की बात यह भी है कि, जब राज्य मंत्रिमंडल द्वारा यह निर्णय ले लिया गया है कि, यदि कोई याचिका हिंदी में दाखिल हो तो उसका अंग्रेजी अनुवाद न माँगा जाए। यह निर्णय राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति जी के पास भेजा गया है, लेकिन उसी सरकार द्वारा नियुक्त महाधिवक्ता का हिंदी के विरुद्ध या अंग्रेजी के पक्ष में खड़े होना जनतांत्रिक मूल्यों के साथ-साथ राज्य सरकार के निर्णय के प्रतिकूल जाने जैसा प्रतीत होता है। किसी जनतांत्रिक देश में जनभाषा में न्याय और जनतांत्रिक सरकार के निर्णय के प्रतिकूल जनभाषा व संघ तथा राज्य का राजभाषा के प्रतिकूल औपनिवेशिक भाषा अंग्रेजी के पक्ष में खड़े होना चिंताजनक है।महाधिवक्ता के अधीनस्थ विधि पदाधिकारी द्वारा उनके विरुद्ध न्यायालय में अपराधिक परिवाद दाखिल करना और पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करवाने की कोशिश से यह मामला पटना उच्च न्यायालय और जनता में चर्चा का विषय बना हुआ है। मुझे लगता है कि, राज्य सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप कर इस मामले का कोई सम्मानजनक समाधान निकालना चाहिए। देशभर के भारतीय भाषा-प्रेमियों और जनभाषा में न्याय के समर्थकों की निगाह इस मामले पर है।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)