श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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मेरी जन्मदाता माता पूज्य पिता कोटि नमन,
अपने पूज्य चरणों में, स्वीकारिए मेरा वन्दन।
अभी भी याद है मुझे पिताजी का स्नेह, ममता,
आप दया का सागर थे, हे हमारे पूज्य पिता।
ऐसा वक्त नहीं ‘देवन्ती’ माता-पिता को भूली,
बचपन की फुलवारी में, अम्मा की गोद में झूली।
कितनी चिंता करते थे पिता, अच्छे घर ब्याह दूँ,
मैं भी प्रार्थना करती हूँ, हर जन्म में आपकी पुत्री बनूँ।
माता-पिता बरगद की छाँव, के जैसा आशीष दिया है,
हर पहला निवाला, भाई से पहले हमें दिया है।
खो गया वह वक्त, बचपन की फुलवारी,
जहाँ शाम-सुबह गूँजा करती थी किलकारी।
याद आती है, जब बचपन की वो फुलवारी,
पर अब खो गई है, भाई-बहन की किलकारी
भाई-बहन, साथ मिलकर पढ़ना-पढ़ाना।
कोई रूठ गया है, तो उनको प्यार से मनाना।
पापा के आगे, नहीं चलता कोई बहाना,
जल्दी उठने के लिए, माँ से डांट खाना।
मुझे दादा-दादी की, दुलार की बातें याद आती है,
पापा मम्मी की याद भी बहुत सताती है।
देखते-देखते बीत गया वक्त बचपन का,
बदला रूप, आ गया वक्त नव यौवन का।
समय बदल गया, दीदी बन गई हैं टीचर,
हमारे सहोदर भाई बन गए हैं ऑफिसर।
समय का पहिया चलता रहा, रूका नहीं।
खो गए हैं माता-पिता, दुबारा मिले नहीं।
क्यों याद आई है बचपन की किलकारी,
देवता बनें माता-पिता, खो गई फुलवारी॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |