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मोबाइल युग

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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शाम के वक्त रास्ते में टहलने निकला ही था, देखता हूँ कि एक व्यक्ति अपने-आप बड़बड़ाते हुए चले जा रहा था। उसे अपने आस-पास की कोई भी सुध नहीं थी। यह बात तब पता चली,जब वह एक गाड़ी की हॉर्न नहीं सुन पाया। चालक ने सही समय पर ब्रेक लगा दिए और दुर्घटना होते-होते बच गई। चालक गाड़ी से उतरकर उस व्यक्ति को ज़ोर-ज़ोर से डांट रहा था,पर मुझे ताज्जुब हुआ,जब देखा कि,वो व्यक्ति निर्लिप्त-निर्विकल्प भाव से ‘जैसे कुछ भी नहीं हुआ और कुछ भी नहीं सुना हो’ और बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ गया। मैंने सोचा शायद वह व्यक्ति प्रज्ञ पुरुष होगा। रास्ते में भीड़ जमा हो गई थी। एक परिचित बोला,यह मोबाइल आज छोकरे की जान ले लेगा। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,वो व्यक्ति तो अपने-आप ही बड़बड़ाता हुआ जा रहा था,और उसके हाथ में मोबाइल भी नहीं था।
घर आकर जब पत्नी को इस घटना के विषय में बता रहा था,तब बेटा बोला,क्या पापा,आप इस मोबाइल युग के नहीं हो, लगता है।
मैंने पूछा क्यों क्या हो गया,तब बेटा बोला,मोबाइल उस आदमी ने जेब में रखा थी,और वह इयर फोन से बात कर रहा था। शायद अंधेरे में आपको इयर फोन नहीं दिखाई दिया। उसके बाद मैं ऑफिस और रास्ते में गौर से देखता था,तो पता चला कि लोग अपने-आप बड़बड़ाते नहीं हैं,बल्कि वे मोबाइल में बात कर रहे होते हैं,और उनका इयर फोन इतना छोटा होता है कि बाहर से ठीक से दिखाई नहीं पड़ता है।
एक दिन रास्ते में जब निकला,तब देखा एक व्यक्ति जिसकी गर्दन टेढ़ी थी मोटर साइकल चला रहा था और सामने से आ रही स्कूटी को टक्कर मार दी। सड़क पर जो लोग थे,उस टेढ़ी गर्दन वाले को बुरा-भला कहने लगे। मुझे उस टेढ़ी गर्दन वाले दिव्यांग व्यक्ति के ऊपर दया आ रही थी,पर उसने जब अपनी गर्दन सीधी की,तब पता चला कि जिसे दिव्यांग सोच रहा था,वह दिव्यांग नहीं था। उसके कंधे और गर्दन के बीच से अचानक मोबाइल प्रकट हो गया,जिसे कंधे के साथ फंसाए हुए वो गर्दन को टेढ़ी कर मोटर साइकल चलाते हुए अपनी धुन में गलत दिशा से जा रहा था। जब स्कूटी के साथ टक्कर हुई,तब उसे होश आया कि वो कहाँ पर गाड़ी चला रहा है। मैंने देखा कि,स्कूटी चालक भी गाड़ी चलाते हुए मोबाइल पर बात कर रहा था। उसका मोबाइल उसके हाथ से छिटक कर गिर गया। रास्ते में भीड़ लग गई,पर लोग गिरे हुए व्यक्ति को उठाने की बजाय अपने मोबाइल से उनका वीडियो बनाने में लगे हुए हैं। मैंने कुछ लोगों की मदद से दोनों व्यक्तियों को खड़ा किया और उनकी गाड़ी को उठाया,तथा उनका कुशल-क्षेम पूछने लगा । वो स्कूटी सवार अपनी हालत देखने की बजाय अपना मोबाइल खोजने में लग गया था,पर किसी ने उसका गिरा हुआ मोबाइल पार कर दिया था। अब वो व्यक्ति मुझ पर बिगड़ने लगा,पर लोगों ने उसे किसी प्रकार समझाकर चुप करवाया,नहीं तो मोबाइल के शोक में पता नहीं,वो व्यक्ति न जाने क्या कर बैठता।
अपनी पत्नी को लेकर मॉल में कुछ सामान खरीदने गया,तो देखा कि अनेक महिलाएँ और नव-युवतियां मॉल के खूबसूरत पुतले,सीढ़ी,दुकान के सामने,और होटल में खाते हुए अपनी सेल्फ़ी ले रहे थे। उनके साथ गए पुरुष साथी दूर बैंच पर बैठ मॉल के मुफ्त वाई-फाई द्वारा मोबाइल में सिनेमा और यू-ट्यूब देखने में व्यस्त थे। मेरी पत्नी एक दुकान में कुछ सामान लेने के लिए घुसी। माहौल देखते हुए मैं भी मोबाइल निकाल मुफ्त वाई-फाई का लुफ़्त उठाने लग गया। कुछ देर बाद मुझे लगा कि,पत्नी बोली चलिए जी। मैं मोबाइल देखते हुए चला जा रहा था कि,इतने में पीछे से गरजदार आवाज़ आई,इस चुड़ैल के साथ कहाँ जा रहे हैं। मैंने मोबाइल से सिर उठाकर देखा कि मैं किसी अन्य महिला के साथ-साथ चला जा रहा था,और वो भी मोबाइल में अपनी खींची गई तस्वीर देखने में मगन थी…। उसके बाद पत्नी के हाथों मेरी धुलाई के दृश्य की कल्पना आप लोगों की कल्पना शक्ति के ऊपर छोड़ दे रहा हूँ…।
जब बेटे ने अपनी माँ को नया मोबाइल खरीदकर दिया,तब पत्नी की खुशी का ठिकाना नहीं था। बेटा भी माँ की खुशी देख फूला नहीं समा रहा था। उसने माँ को फ़ेसबुक,व्हाट्सएप आदि चलाना सिखा दिया। नतीजा,अब रोज उसे महाविद्यालय जाने में परेशानी हो रही है,क्योंकि उनकी माताजी अपने मोबाइल की दुनिया में इतनी मस्त रहने लगी कि उन्हें ख्याल नहीं रहता कि कौन-से समय में कौन-कहाँ जा रहा है, और उसके लिए उन्हें क्या आवश्यकता है। रोज-रोज खाना भी जला या अधपका मिलने लगा। पूछने से पता चलता कि महोदया मोबाइल में व्यस्त थी। बेटा अपने-आपको बहुत होशियार समझता था,पहले भी मुझे उसने कई बार अपनी माँ के लिए मोबाइल दिलवाने की बात की थी,पर हर बार मैं इसी आशंका के कारण टाल देता था। अब जाकर उसे समझ में आया कि, पिताजी के बाल धूप में सफ़ेद नहीं हुए हैं…। अब उसके साथ मैं भी मोबाइल पीड़ित हो गया हूँ,अब अपने दु:ख की बात आप लोगों के सिवाय भला किससे कहता…?

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

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