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मौखिक व्यंग्य एक साहित्यिक उपकरण

‘साहित्य में व्यंग्य की भूमिका’ पर विशेष प्रस्तुति…

नीदरलैंड।

‘अंतरराष्ट्रीय हिन्दी संगठन नीदरलैंड’ के मासिक साहित्यिक कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसारित कार्यक्रम ‘साहित्य में व्यंग्य की भूमिका’ व्यंग्य पुरोधा शरद जोशी की जन्म जयंती को समर्पित किया गया। कार्यक्रम में लब्ध प्रतिष्ठित साहित्य मनीषियों ने हिस्सा लिया।
संगठन अध्यक्ष व कार्यक्रम संयोजिका साहित्यकार डॉ. ऋतु शर्मा, अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ व्यंग्यकार व केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के सदस्य प्रो. राजेश कुमार उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा उपस्थित नहीं हो सके। मुख्य अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार, कवि व नेशनल बुक ट्रस्ट के सम्पादक डॉ. लालित्य ललित उपस्थित रहे। विषय प्रवर्तक के रूप में साहित्यकार डॉ. सुनीता श्रीवास्तव रहीं। मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ व्यंग्यकार मीना सदाना अरोड़ा ने उपस्थिति दर्ज कराई।
संयोजिका डॉ. शर्मा ने शुरूआत शरद जोशी के कृतित्व व व्यक्तित्व के विषय में बताते हुए सभी अतिथियों के स्वागत से की। उन्होंने अध्यक्ष प्रो. कुमार को आमंत्रित किया। व्यंग्य क्या है ? इसका मुख्य उद्देश्य क्या है ? पर प्रो. कुमार ने कहा कि, व्यंग्य साहित्य में व्यंग्य की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। या यूँ कहें कि व्यंग्य समाज को आईना दिखाने का काम करता है। व्यंग्य साहित्यिक उक्ति है, जिसमें वक्ता उपहास या उपहास करने के लिए कहता कुछ है, किन्तु उसका अर्थ कुछ और होता है। शरद जोशी जैसे व्यंग्य पुरोधा ने व्यंग्य को लेखन और मंच दोनों रूप में स्थापित किया। आज के समय में भी बहुत अच्छे व्यंग्यकार हैं, जिन्हें लोग पढ़ना चाहते हैं। उनकी पुस्तकें पाठकों द्वारा ख़रीदी जा रही है। पाठकों द्वारा जब व्यंग्य पढ़ा जाएगा, तभी उसका आँकलन किया जाएगा। आज व्यंग्यकारों को भी वही मान-सम्मान प्राप्त है, जो कहानी या उपन्यास लिखने वाले लेखकों को मिलता है। इसलिए व्यंग्य लेखन जारी रहना चाहिए।
कार्यक्रम में डॉ. श्रीवास्तव ने व्यंग्य लेखन आज के समय में चुनौती क्यों बन गया है ? पर
कहा कि, व्यंग्य लेखन आज के समय में एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। लोग वही पढ़ना चाहते हैं, जिसे वह पंसद करते हैं। सच्चाई कोई नहीं सुनना पढ़ना चाहता।व्यंग्य कहानी कहने के माध्यम से किसी व्यक्ति, स्थिति या सामाजिक विश्वास प्रणाली का उपहास करने या आलोचना करने की कला है।
मुख्य अतिथि डॉ. ललित ने व्यंग्य के प्रकार, एक अच्छा व्यंग्य लेख आदि पर प्रकाश डालते हुए बताया कि, लेखक अपने लेखन में जिन पात्रों को गढ़ता है और जब पाठक उन्हें पढ़े और आत्मसात् करे तो वही व्यंग्य लेखन की विशेषता है। व्यंग्य को आप लेख के रूप में और मौखिक रूप दोनों में व्यक्त सकते हैं। मौखिक व्यंग्य एक साहित्यिक उपकरण है, जिसमें एक वक्ता का एक महत्वपूर्ण बिंदु पर ध्यान आकर्षित करने के लिए एक बात कहता है, लेकिन उसका मतलब कुछ और ही होता है।
वरिष्ठ साहित्यकारों को नव लेखकों के मार्गदर्शन के साथ साथ उनका सम्मान भी करना चाहिए।
मुख्य वक्ता मीना अरोड़ा ने अपने वक्तव्य में बताया कि, व्यंग्य एक विधा है जिसमें कटाक्ष उसकी शैली है। व्यंग्य को सामाजिक, राजनीतिक किसी भी रूप में भी लिखा जा सकता है।
डॉ. शर्मा ने अतिथियों का आभार ज्ञापित किया।