हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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मोती की माला में ढूंढ रहे राम,
कहाँ मिलोगे मेरे प्रभु राम ?
जहां राम नहीं, वहाँ कोई काम नहीं,
हमें तो हमारे राम चहिए।
बिखरी हुई इस माला में कब आओगे ?
कब बैर शबरी के खाओगे मेरे राम ?
तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं इस दुनिया में मेरे राम,
हमें तो हमारे राम चहिए।
मैं हनुमान, तुम मेरे प्रभु श्रीराम,
मैंने तो अपने हृदय में तुझे बसा लिया है
देखो मैंने यहाँ राम दरबार लगा लिया है,
क्योंकि हमें तो हमारे राम चहिए।
आपने तो पत्थर बनी अहिल्या को तार दिया,
आप खैवनहार हो तभी तो केवट को भवसागर से पार लगाया
विभीषण की भक्ति ने उसका भाग्य चमकाया।
और रावण के घमंड को चूर-चूर कर मार गिराया,
तभी तो हमें राम चहिए॥