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राष्ट्रभाषा हिन्दी

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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‘विश्व हिन्दी दिवस’ विशेष…..


सब भाषाओं की जननी,ये हिन्दी बहुत महान है,
ये हिन्दी अपनी शान है,ये हिन्दी हिन्दुस्तान है।
जय जय हिन्दी हे…॥

मात भारती के माथे की शोभा जैसे बिन्दी,
दमक रही सूरज के जैसी है भारत में हिन्दी।
गूँज रहा अब विश्व पटल पर हिन्दी गौरव गान है,
ये हिन्दी अपनी शान है,ये हिन्दी हिन्दुस्तान है।
जय जय हिन्दी हे…॥

तुलसी सूर कबीरा ने हिन्दी में छंद बनाये,
श्याम भक्ति में मीरा ने पद नाच नाच कर गाये।
हिन्दी हिन्द देश की भाषा,हमको बड़ा गुमान है,
ये हिन्दी अपनी शान है,ये हिन्दी हिन्दुस्तान है।
जय जय हिन्दी हे…॥

महादेवी चौहान सुभद्रा हिन्दी की अनुगामी,
पंत,निराला ने हिन्दी की डोर हाथ में थामी।
दिग्दिगंत में मान बढ़ाया,नहीं कोई अनजान है,
ये हिन्दी अपनी शान है,ये हिन्दी हिन्दुस्तान है।
जय जय हिन्दी हे…॥

क्रांति जगत में भी हिन्दी का ही वर्चस्व बढ़ा है,
आग लगा दे सीने में,ऐसा साहित्य गढ़ा है।
आज हमें मिल कर के करना हिन्दी का उत्थान है,
ये हिन्दी अपनी शान है,ये हिन्दी हिन्दुस्तान है।
जय जय हिन्दी हे…॥

ले मशाल हाथों में फिर हिन्दी की अलख जगायें,
गाँव-गाँव हर गली-गली हम हिन्दी को पहुँचायें।
फैला दें हम सकल विश्व में जन गण मन जो गान है,
ये हिन्दी अपनी शान है,ये हिन्दी हिन्दुस्तान है।
जय जय हिन्दी हे…॥

कितने ग्रंथ लिखे हिन्दी में सभी उन्हें अपनायें,
हिन्दी के पोषक रचनाकारों का मान करायें।
यही राष्ट्रभाषा है,इस पर हमें बहुत अभिमान है,
ये हिन्दी अपनी शान है ये हिन्दी हिन्दुस्तान है।
जय जय हिन्दी हे…॥

भारत के हर एक प्रांत में हिन्दी को पहुंचा दो,
हर कोने-कोने में हिन्दी का परचम फ़हरा दो।
‘शंकर’ दादा कहें गर्व से हिन्दी मेरा मान है,
ये हिन्दी अपनी शान है,ये हिन्दी हिन्दुस्तान है।
जय जय हिन्दी,हे जय जय हिन्दी,
जय जय हिन्दी,हे जय जय हिन्दी॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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