गोष्ठी…
भोपाल (मप्र)।
लघुकथा हो या साहित्य की अन्य कोई विधा, जो रचना सीधे आम पाठक के हृदय में उतर जाए, वही सृजन की सच्ची कसौटी है। गीता जी की लघुकथाएँ उनके हृदय से उपजी विविध विषयी स्वानुभूतियाँ हैं, इन लघुकथाओं का लघुकथाकार पुनर्पाठ कर इन्हें और कसावट प्रदान कर सकती हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार और समीक्षक डॉ. दिलीप बच्चानी (राजस्थान) ने यह उदगार डॉ. गीता यादव (मुम्बई) द्वारा प्रस्तुत लघुकथाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए व्यक्त किए। इस आभासी आयोजन के अवसर पर डॉ. यादव ने ‘ताऊ जी सीट पर हैं’ और ‘एक प्रेम दो पीर’ नामक विविध विषयों पर केन्द्रित कई लघुकथाओं का वाचन किया।
प्रारंभ में स्वागत उद्बोधन संस्था सचिव घनश्याम मैथिल अमृत ने दिया। कार्यक्रम की रूपरेखा पर संग्रहालय की निदेशक कांता रॉय ने विचार प्रस्तुत किए। सफल संचालन वरिष्ठ लघुकथाकार विजय जोशी ने किया। डॉ. यादव ने उपस्थितजनों का आभार प्रकट किया।