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विनाश ही विनाश, संकल्प अवश्य लो

राधा गोयल
नई दिल्ली
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हर तरफ विनाश ही विनाश है। कुछ देशों की अति विस्तारवादी नीतियों ने सारे विश्व को युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। एक युद्ध खत्म नहीं होता कि, दूसरा युद्ध शुरू हो जाता है। मणिपुर में कुकी और मैतेई लोगों में हिंसा शुरू हो गई, उसमें कितना विनाश हुआ। अभी निपट भी नहीं पाए थे कि हमास और इजराइल में भयंकर युद्ध शुरू हो गया। चारों तरफ विनाश ही विनाश का तांडव नजर आता है। लाशों का अम्बार लगा है। अस्पताल नष्ट हो गए। बड़ी-बड़ी इमारतें नष्ट हो गईं। इस युद्ध के कारण अन्य देशों से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखला भी बाधित हुई।
कब लोग सोचेंगे कि खुद भी चैन से जियो और दूसरों को भी चैन से जीने दो।
युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है। जब शांति के सारे ही प्रयास असफल हो जाएँ, तब युद्ध अनिवार्य हो जाता है, लेकिन किसी की भूमि को हथियाने के लिए बेवजह युद्ध करना एकदम गलत निर्णय है।
आजकल इन युद्धों से एक बात तो समझ आती है कि हर देश को रक्षा उपकरणों पर अधिक से अधिक खर्च करना चाहिए। दूसरे देश पर आक्रमण करने के लिए नहीं, बल्कि अपनी रक्षा के लिए, ताकि कोई तुम पर आक्रमण करने से पहले २० बार सोचे कि अंजाम क्या हो सकता है, क्योंकि ज्यादातर युद्ध वे देश थोपते हैं, जो अपने-आपको अधिक शक्तिशाली समझते हैं। यह आज से नहीं, वरन सदियों से यही तो होता आ रहा है। असुर अपनी शक्ति का उपयोग दूसरों को नष्ट करने में करते हैं तो सज्जन लोग जगत का निर्माण करने में करते हैं। दूसरों की मदद करने में करते हैं। सत्कार्यों में करते हैं।
इस दशहरे पर हम सब एक संकल्प लें कि हमारे भीतर जो १० अवगुण हैं, उन पर विजय प्राप्त करें। दूसरों पर एकाधिकार करने के विचार को त्याग कर अपने चित्त की वृत्तियों पर नियंत्रण करें।
सही मायनों में दशहरा में यही संदेश छिपा है कि हम १० दुर्गुणों को त्याग करें। जिस दिन ऐसा हो जाएगा, यह दुनिया स्वर्ग के समान हो जाएगी, क्योंकि विनाश करना जितना आसान है, विकास उतना आसान नहीं है। विनाश करने वाले, आगजनी और लूटपाट जैसी घटनाएँ करने वाले, बड़े-बड़े शो-रूम और फैक्ट्री को आग लगाने वाले या देश का विध्वंस करने वाले आतंकवादी यह नहीं सोचते कि उन्होंने कितनी जिंदगियों को तबाह किया है,
कितनी माँगों का सिन्दूर पोंछा है,

कितने लोगों के अरमानों में आग लगाई है, कितने लोगों से उनके जीने का अधिकार छीना है, कितने बच्चों से उनके माँ-बाप को छीना है, कितने लोगों की बुढ़ापे की लाठी तोड़ी है, कितने लोगों को बेरोजगार किया है और कितने देशों की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से झकझोर दिया है। मन को झकझोरो और सोचो।