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साथी साथ निभाना

राधा गोयल
नई दिल्ली
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लगातार बारिश होने से, बाढ़ आ गई भारी,
खेत और घर डूब गए हैं, फैली है महामारी
ऊपर से तूफान ने मारा, कोई नहीं सहारा,
पत्नी और बच्चे को लेकर, भाग रहा बेचारा।

शायद कोई रैन-बसेरा उसे कहीं दिख जाए,
इस भीषण विपत्ति से उसको तनिक त्राण मिल जाए
एक यही संतोष है कि परिवार साथ है उनका,
छोटा-सा घर बना ही लेंगे, जोड़ के तिनका-तिनका।

पति-पत्नी एक दूसरे से कह रहे हैं-
जब मैं हिम्मत लगूँ हारने, साथी साथ निभाना,
सुख-दु:ख तो आने-जाने हैं, उनसे क्या घबराना ?
शायद ये दारूण दु:ख भी कुछ सिखलाने आया है,
यह सब आखिर हुआ है क्यों, यह बतलाने आया है।

जंगल सभी काट डाले, तालाब पाट डाले हैं
सभी प्राणियों को जीवन के आज पड़े लाले हैं
वर्षा जल संचित करने के होते नहीं उपाय,
कंक्रीट की सड़कें, धरा पानी को सोख न पाय।

धनलोलुप लोगों के कारण, कितनी जानें जातीं,
इतना विनाश देख कर भी क्यों इन्हें अक्ल नहीं आती।
अब हमको ही मिलकर लोगों को समझाना होगा,
धरती और जंगल का दोहन हमें रोकना होगा॥