श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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हो हरित वसुन्धरा….
हे हमारी माता वसुन्धरा तुझे प्रणाम,
हमारी हरी-भरी वसुन्धरा तुझे प्रणाम।
सुन्दर शोभ रही है अपनी खेतों की हरियाली,
लहलहाती है अपनी धरती में, जौ-गेहूँ की बाली।
अपनी-अपनी वसुन्धरा में, किसान और भाई मजदूर,
हर ऋतु में हर्षोल्लास से, मेहनत करते हैं भरपूर।
कोटि नमन,कोटि नमन हे हमारी हरी-भरी वसुन्धरा,
आपके सौजन्य से, हे माता हरेक घर अन्न-धन भरा।
अपनी पावन पुण्य धरा में, राजा हो या रंक-फकीर,
अपने भाग्य के अनुसार, सबकी है धरती की लकीर।
जब-जब अपनी हरित वसुन्धरा में, हरियाली छाती है,
सभी किसान के हृदय में, खुशियाँ दुगनी हो जाती है।
खेतों में हरियाली शोभे, और बागों में फूलों की डाली,
आनन्द विभोर होता है, देख-देख के बगिया का माली।
बरसता हुआ जल, और वसुन्धरा की अपनी हरियाली,
इनका ही अन्न खा के मनाते तीज-त्यौहार, खुशियाली।
हर जीवन का प्राण बचाने वाली हे हरित वसुन्धरा,
नमन करती ‘देवन्ती’, अन्न देते रहना हे हरित वसुन्धरा॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |