शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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हर अँधियार हटाता चल तू।
दीपक एक जलाता चल तू॥
सूरज बनकर सदा चमकना,
खुशबू बनकर सदा महकना।
वातावरण बनाता चल तू,
हर अँधियार हटाता चल तू…॥
दुनिया का है चलन निराला,
नहीं यहाँ खुश होने वाला।
सबको ये समझाता चल तू,
हर अँधियार हटाता चल तू…॥
लोभ मोह में फँसे हुए सब,
गले-गले तक धँसे हुए सब।
सारे फंद मिटाता चल तू,
हर अँधियार हटाता चल तू…॥
भटक रहा हो जो राहों से,
घायल जिसका मन आहों से।
ढांढस उसे बँधाता चल तू,
हर अँधियार हटाता चल तू…॥
तुमको सबका साथी बनना,
राहों के सब काँटे चुनना।
मार्ग प्रशस्त बनाता चल तू,
हर अँधियार हटाता चल तू…॥
ऐसे भाव गीत में भर दे,
जो जीवन को जागृत कर दे।
हो दतचित्त सुनाता चल तू,
हर अँधियार हटाता चल तू…॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है