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अंतर्द्वंद

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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मैं राम जपूं या बांके बिहारी,
हनुमान जपूं या त्रिपुरारी।
इस असमंजस में रहती हूं,
कुछ आगे सोच नहीं पाती।
दिन,साल,महीने बीत गए,
उदिग्न-सी खुद को हूं पाती।
एक दिन मेरा अंतस बोला,
‘इतनी व्याकुल क्यों रहती हो,
क्या माकड-जाल सा बुनती हो ?
हैं राम वही,जो बांके बिहारी,
हनुमान वही,जो त्रिपुरारी।
सब धर्म कहें ईश्वर है एक,
क्यों तुमको देखते हैं अनेक ?
ईश्वर का अंश ही तो तुम हो,
विचलित क्यों हो ?
तुम चुप क्यों हो ?
प्रभु अपने अंतस रमता है,
दृष्टिगोचर नहीं होता लेकिन
वह ज्ञान,ध्यान से मिलता है।
ईश्वर में तुम,तुममें ईश्वर,
यह भेद समझ जाओगी तुम,
अज्ञान ये सब मिट जाएगा।
मुक्ति मार्ग मिल जाएगा,
जग ईश्वरमय हो जाएगा।
अंतर्द्वंद यह सब मिट जाएगा,
सब ईश्वरमय हो जाएगा॥’

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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