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अगली पीढ़ी का बोझ कौन उठाएगा

सलिल सरोज
नौलागढ़ (बिहार)

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आग लगाने वाले आग लगा चुके,
पर इल्ज़ाम हवाओं पे ही आएगा।

रोशनी भी अब मकाँ देखे आती है,
ये शगूफा सूरज को कौन बताएगा।

बाज़ाए में कई ‘कॉस्मेटिक’ चाँद घूम रहे,
अब आसमाँ के चाँद को आईना कौन दिखाएगा।

नदी,नाले,पोखर,झरने सभी खुद ही प्यासे,
तड़पती मछलियों की प्यास भला कौन बुझाएगा।

धरती की कोख़ में है मशीनों के ज़खीरे,
क्यों नींद आती नहीं घासों पे,कौन समझाएगा।

सिर्फ फाइलों में ही बारिश होती रहेगी,
या सचमुच कोई बादल पानी भी दे के जाएगा।

मोबाइलों से चिपटी लाशें ही बस घूम रहीं,
ऐसे दौर में अगली पीढ़ी का बोझ कौन उठाएगा॥

परिचय-सलिल सरोज का जन्म ३ मार्च १९८७ को बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)हुआ है। आपकी आरंभिक शिक्षा कोडरमा (झारखंड) से हुई है,जबकि बिहार से अंग्रेजी में बी.ए तथा नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए सहित समाजशास्त्र में एम.ए.भी किया है। एक निर्देशिका का सह-अनुवादन,एक का सह-सम्पादन,स्थानीय पत्रिका का संपादन एवं प्रकाशन किया है। सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र ही आपकी सम्प्रति है। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिशकरते हैं। ३० से अधिक पत्रिकाओं व अखबारों में इनकी रचनाओं का निरंतर प्रकाशनहो चुका है। भोपाल स्थित फॉउंडेशन द्वारा अखिल भारतीय काव्य लेखन में गुलज़ार द्वारा चयनित प्रथम २० में आपको स्थान मिला है। कार्यालय की वार्षिक हिंदी पत्रिका में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।

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