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अनन्त क्षमताओं की जागृति से ही मिलेगी सफलता

मुकेश कुमार मोदी
बीकानेर (राजस्थान)
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जीवन में अनेक प्रकार की परिस्थितियाँ आना हमारे जीवन्त होने का प्रमाण है। परिस्थितियाँ, समस्याएँ, मुश्किलें तो जीवन में आती रहती है और हर व्यक्ति उन पर विजय प्राप्त करने का हर सम्भव प्रयास भी करता है, किन्तु सभी लोग उनसे बाहर नहीं निकल पाते या उन पर विजय नहीं पाते हैं। शायद इसका कारण जानने का प्रयास बहुत कम लोग कर पाते हैं।
यदि गौर से देखें तो, हमारे अपने ही भीतर प्रकृति प्रदत्त अनन्त और अविनाशी क्षमताएं व्याप्त हैं जो हर परिस्थिति पर विजय पाने और उससे बाहर निकलने के लिए पर्याप्त है, किन्तु हमारा ही मनोभ्रम तथा सकारात्मक विश्वास का अभाव हमें उन परिस्थितियों से बाहर निकलने में हमारी क्षमता को घातक रूप से दुर्बल करता है।
नकारात्मक धारणाओं के कारण हमारा मन असामान्य हलचल रूपी रोग से ग्रसित हो जाता है। एक अस्थिर मन दीवार घड़ी के पेंडुलम की तरह दाएं से बाएं और बाएं से दाएं डोलता रहता है। ऐसी स्थिति में मानव किसी एक ठोस निर्णय तक पहुंच नहीं पाता, और यदि पहुंच भी जाता है तो अपने ही निर्णय पर उसे संदेह होने लगता है। मानव मन की यही अवस्था उसके अपने ही दृढ़ संकल्प या विश्वास की शक्ति के लिए अत्यन्त ही हानिकारक है। ऐसी रुग्ण मानसिकता के साथ सफलता की सीढ़ी पर एक कदम रखना भी असम्भव है। इसलिए, सबसे पहले इस अटल सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि यदि जीवन में आने वाली किसी भी परिस्थिति पर विजय पाने में असफल होने का कारण हमारे ही नकारात्मक विचार, मानसिक दुर्बलता और मन की अस्थिरता है।
हमारी क्षमताएं असीमित होते हुए भी असफलता को हमने सार्वभौमिक सत्य की तरह स्वीकार करते हुए अपने मन में बिठा लिया है। यही निर्बल धारणा ठोस चट्टान बनकर हमारे अवचेतन मन में जमी हुई है। इसी लिए, व्यक्ति के अन्तर्मन में अनन्त और असीमित शक्तियों का भण्डार होते हुए भी वह उसे पहचाने बिना उसका उपयोग नहीं कर पाता है, जिसके कारण मानव छोटी- छोटी परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाता।
उदाहरण के लिए एक हाथी का पैर बचपन से ही एक छोटी-सी रस्सी से बांधा जाता है। रस्सी की लम्बाई उसके शारीरिक रूप से घूमने की मानसिक सीमा निर्धारित कर देती है। युवा होने पर वह हाथी उस रस्सी से कई गुना मजबूत रस्सी को तोड़ने की क्षमता रखते हुए भी मानसिक सीमाओं के बंधन में इस प्रकार से जकड़ा रहता है कि, वह मामूली-सी रस्सी को भी तोड़ नहीं सकता। बाल्यकाल से ही वह हाथी ये स्वीकार कर लेता है कि वह उस रस्सी को तोड़कर बंधनमुक्त होने में सक्षम नहीं है। इस प्रकार मामूली-सी रस्सी के बंधन में बंधे रहने का वह अभ्यस्त हो जाता है। स्वतन्त्र रूप से विचरण करने के विषय में वह संभवतः स्वप्न में भी सोच नहीं पाता होगा। इसी प्रकार हमारा मन भी ऐसी ही अनेक प्रकार की रस्सियों से बंधा हुआ है। बाल्यकाल से ही हमारी क्षमताओं की सीमा ये कहकर तय कर दी जाती है कि आप सफल नहीं हो सकते, आप तो बुद्धू हो, आपका दिमाग ही काम नहीं करता, आप जिन्दगी में कुछ नहीं कर सकते आदि-आदि…। इन्हीं मनोसीमाओं से ग्रसित मानसिकता के साथ हम युवावस्था की और कदम रखते हैं, एवं हम अपनी क्षमताओं का उपयोग ना कर पाने की स्थिति में मामूली-सी आजीविका प्राप्त करने के लिए भी सक्षम नहीं हो पाते। यदि संयोग से सफलता मिल भी जाती है तो उसे अपने ही आत्मविश्वास के अभाव में स्थाई नहीं रख पाते। हमारी ही कमजोर चेतना के कारण हमारे भीतर छिपी हुई क्षमताओं और विशेषताओं का उचित समय पर दोहन नहीं हो पाता है। वर्षों से हमारे मन में कमजोरी या नकारात्मकता के विचार पलते रहने के परिणामस्वरूप हमारा आत्मविश्वास या हमारी चेतना और ही कमजोर होती जाती है जो लंबे समय तक हमारे ही आसपास की स्थितियों पर शक्तिशाली नकारात्मक प्रभाव डालती है। इसी कारण हमें हमारे जीवन में हर घटना हमारी उम्मीद के विपरीत घटित होती दिखाई देती है।
हमारे जीवन में जितनी भी समस्याएं या कठिनाइयां हैं, वे सब समाज द्वारा नहीं थोपी गई हैं, बल्कि हमारे स्वरचित नकारात्मक और कमजोर संकल्पों का परिणाम है। इसी का दुष्परिणाम है कि हम स्वयं को असहाय महसूस करते हैं।
इस मनोविकार, असहाय मनोवृत्ति, शक्तिहीन मानसिकता का समाधान आखिर कहां मिलेगा। जिस प्रकार अपौष्टिक भोजन खाने से शरीर कमजोर होता है और पौष्टिक भोजन से शरीर शक्तिशाली बनता है, उसी प्रकार कमजोर संकल्पों से चेतना कमजोर होती है और शक्तिशाली व सकारात्मक संकल्पों से बल मिलता है। इसलिए, अपने असहाय मन को शक्तिशाली, शुद्ध और सकारात्मक संकल्पों का सहारा देकर अपनी उस मूल अवस्था तक लाना होगा, ताकि स्वतः ही हमारा मन सकारात्मक विचार करने लग जाए और नकारात्मक विचारों का नामो निशान ही ना रहे। मन को सकारात्मक संकल्पों का यह उपचार सुबह ४ बजे से पहले जागकर देना आवश्यक है। यही वह समय है, जब प्रकृति सम्पूर्ण शांत और शुद्ध अवस्था में होती है। ऐसे समय पर जब मन को शुद्ध, सकारात्मक और शक्तिशाली संकल्पों का सेवन करवाया जाता है तो उसका प्रभाव रात्रि को सोने तक कायम रहता है। रोज यह अभ्यास करने से हम निश्चित रूप से शनै:-शनै: नकारात्मक और कमजोर चेतना के महारोग से मुक्त होने में सफल होकर अपने ही अन्तर्मन में सोई हुई अनन्त क्षमताओं को जागृत कर उनका उपयोग जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए कर पाएंगे।

परिचय – मुकेश कुमार मोदी का स्थाई निवास बीकानेर में है। १६ दिसम्बर १९७३ को संगरिया (राजस्थान)में जन्मे मुकेश मोदी को हिंदी व अंग्रेजी भाषा क़ा ज्ञान है। कला के राज्य राजस्थान के वासी श्री मोदी की पूर्ण शिक्षा स्नातक(वाणिज्य) है। आप सत्र न्यायालय में प्रस्तुतकार के पद पर कार्यरत होकर कविता लेखन से अपनी भावना अभिव्यक्त करते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-शब्दांचल राजस्थान की आभासी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त करना है। वेबसाइट पर १०० से अधिक कविताएं प्रदर्शित होने पर सम्मान भी मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज में नैतिक और आध्यात्मिक जीवन मूल्यों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करना है। ब्रह्मकुमारीज से प्राप्त आध्यात्मिक शिक्षा आपकी प्रेरणा है, जबकि विशेषज्ञता-हिन्दी टंकण करना है। आपका जीवन लक्ष्य-समाज में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की जागृति लाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-‘हिन्दी एक अतुलनीय, सुमधुर, भावपूर्ण, आध्यात्मिक, सरल और सभ्य भाषा है।’

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