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अब जीना चाहता हूँ

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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बहुत मार लिया खुद को, अब जीना चाहता हूँ,
हाँ, मैं सुख के घूँट पीना चाहता हूँ।

बहुत काफिले देख लिए, बस करो,
अब थोड़ा रूकना भी चाहता हूँ।

सबके करीब रहा बहुत, मिला क्या मुझे!
इसलिए, अब सबसे बस दूरी चाहता हूँ।

फट गई है जिंदगी इतने उसूलों से,
कुछ ना कहो, बस इसे सीना चाहता हूँ।

पता नहीं! किसकी नजर लगी जिंदगी को,
अब उसी को, टीका बनाना चाहता हूँ॥