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‘अहिंसा’ का स्वर्णयुग भारत में…कल्पना

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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चिंतन….

भारत में आज हिंदी की वकालत अंग्रेजी में की जाती है और वे अपनी संतानें अंग्रेजी भाषा में पारंगत कराते हैं। इसी प्रकार अहिंसा का गुणगान हिंसक स्वभाव के मानव करते हैं। आज भारत हिंसा प्रधान देश है, भले हम और हमारे वर्तमान प्रधानसेवक अहिंसा, शांति, सह-अस्तित्व आदि के विशेषणों की बात करते हैं, पर उसके उलट रहते हैं।
भारत वर्ष अपनी बहुत पुरानी धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक चेतना का गढ़ रहा है। हम अपनी प्राचीन सभ्यता-शैली पर बहुत गौरवान्वित होते हैं, जैसे हमारे पिताजी ने घी खाया था और हमारे हाथों में अभी भी खुशबू है! हम बिलकुल नहीं अघाते अपने पुराने ग्रंथों, पुराणों, वेदों में आगमों में कि, हमारी पुरानी विरासत कितनी महान थी। उसी के कारण हम बहुत गदगद होते हैं, क्योंकि हमें ये सब विरासत में मिला। वैसे, हमें जन्म के समय से यह समझाया-बताया गया था कि, हमारे देश में राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध आदि महापुरुषों ने हमें अहिंसा, जीव दया, शाकाहार आदि को अपनाने की प्रेरणा दी और उन्होंने अपनाया।
हमने इतिहास पढ़ा था और उसमें उल्लेख आया था कि, हमारे देश में दूध की नदियाँ बहती थी और शायद ‘सोने की चिड़िया’ कहलाती थी हमारी धरती। उसका मतलब था कि या तो राजा सज्जन रहे या जनता।
खैर, हमने सैकड़ों वर्ष गुलामी में काटे और स्वतंत्रता के आन्दोलन का बिगुल मंगल पांडेय ने बजाया, पर जब उसने कारतूस पर गाय की चर्बी के उपयोग के बारे में सुना तो विद्रोह किया। ऐसे ही हमारे पूर्व प्रधानमंत्री ने चुनाव के पूर्व आचार्य विद्यासागर जी से आशीर्वाद लेते हुए वचन दिया था कि, वे मांस निर्यात पर कार्य करेंगे, और उन्होंने किया भी। उनके कार्यकाल में भारत का मांस निर्यात विश्व में प्रथम स्थान पर है, और तब से अपना स्थान नहीं खोया। वर्तमान प्रधानमंत्री हमेशा चिल्ला-चिल्लाकर अमन, अहिंसा की दुहाई देते नहीं थकते और वादा निभाने में भी बहुत कुशल हैं, पर है उलटा, क्योंकि हमारे नेता अपने दल-जनता से तो दोगली बातें करते हैं, किन्तु धरम-गुरुओं और भगवान को भी सीधे-सीधे धोखा देते हैं।
बात अभी विश्व आहार सम्मलेन की, तो इसमें जो प्रस्ताव पारित हुए, उसके माध्यम से विश्व में मांस और प्रोसेस्ड आहार प्रदाय करने में हम अग्रणी रहने वाले हैं। ये आँकड़े सरकार द्वारा जारी किए गए हैं। इससे लगता है कि, हम हिंसा में अग्रणी होने जा रहे हैं, जबकि हम अहिंसा का बखान करते फूले नहीं समाते। इससे सिद्ध होता है कि, हम सिर्फ अक्षर में आगे हैं, कर्मों में नहीं।
आँकड़ों के अनुसार भारत की दूध, मांस व अण्डे में १८.४८ फीसदी भागीदारी है। भारत द्वारा ११० मिलियन भैंस, १३३ मिलियन बकरे और ६३ मिलियन भेड़ द्वारा दूध उत्पादन किया जाता है। भारत निर्यात में और आगे है। विश्व मंच पर भारत की भैंस, भेड़, बकरे, गाय के मांस, डेरी के खाद्य पदार्थ और शहद में बहुत अच्छी भागीदारी है।
भारतीय भैंस के मांस की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत माँग है, जिसकी ८९.०८ फीसदी पूर्ति भारत करता है। इससे अधिक मांग है और पूर्ति भी। हाँ, एक बात जरूर है कि, ये उत्पादन बिना हिंसा के हो नहीं सकते हैं।
अब तो सरकार ऐसे कत्लखाने खोल रही है, जो यांत्रिक के साथ हजारों जानवरों के एकसाथ बिना पीड़ा-कष्ट रहित प्राण ले सकते हैं। हमारी संवेदना कितनी निर्मल है कि, हम जीव हिंसा बिना कष्ट के दे सकते हैं। क्या करें, हमें तो अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों के अनुरूप मांस, चमड़ा, दुग्ध उत्पादन और निर्यात करना है।
हम खेती भी रासायनिक और यांत्रिक करने लगे हैं, जिससे हम हृदयहीन होते जा रहे हैं। जिस राष्ट्र का आधार हिंसा, खून पर आधारित होगा, उस देश में तो हिंसामय वातावरण हमेशा बना रहेगा। करोड़ों जीवों की हिंसा के बाद अरबों-खरबों रुपयों की आमद होगी तो उनकी आत्मा इस धरातल पर विपरीत प्रभाव अवश्य डालेगी। यह कोई नई बात नहीं हैं, हम परम्परा का पालन कर रहे हैं, क्या करें पुरानी सरकार ने हमें ये विरासत में दी है तो हम उसका पालन कर रहे हैं। हमें कोई परिवर्तन की जरुरत नहीं हैं। यह बहुत बड़ा धोखा मानव जाति के साथ हो रहा है। जब पशु-पक्षी नहीं रहेंगे, तब हमारा वातावरण कैसे संतुलित होगा ?
जीव वध से धन कमाना कोई वीरता का काम नहीं है। अस्त्र-शस्त्र, बारूद की तरह मांस बेचने की भी होड़ लगी है। इस संहार को रोकना होगा, नहीं तो सभ्यता नहीं बचेगी। अभी नहीं चेतोगे तो विश्व युद्ध से कोई न रुकेगा, न ही रोकेगा।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।