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आई दीवाली रे

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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बचपन में भी बड़े मजे, जब आई दीवाली रे
सात दिनों की छुट्टी होती, बंद पढ़ाई रे
बस स्कूल के गृह कार्य में बची कड़ाई रे,
मिट्टी का खुद घरौंदा बनाते, करें खूब सनाई रे।

उस घरौंदे में था एक सपना, रंग से खूब सजाया रे,
खुशी लिए हम सब-कुछ करते लेप-लिपाई रे
झूमो-नाचो, गाओ खुशी मनाओ, आई दीवाली रे,
लाओ फुलझड़ी, शुभ है ये घड़ी, पटाखों की लड़ी रे।

बच्चों में होती उत्सुकता, वर्षों से इसकी प्रतीक्षा लाई दीवाली रे,
नए-नए सब पहनें कपड़े, घर-घर ज्योत जलाई रे
माँ करती ‘लक्ष्मी-गणेश-कुबेर’ की पूजा, भोग में खूब मिठाई रे,
बच्चे बाहर मस्ती करते, देख दीपों की जगमगाई रे।

जहाँ पटाखों की लड़ियाँ, ढेर फुलझड़ियाँ भीड़ जुटाई रे,
बच्चे सब तब दौड़ पहुँचते बँटी मिठाई रे
लौटते फिर अपने घरौंदों में वहाँ खूब ज्योत जलाई रे,
रॉकेट, सीटी, डबल साउंड चाकलेटी बम, घिरनी छुड़वाई रे।

माता-पिता फिर बाहर आकर दूर हटाए रे,
सभी चलो अब अपने घर को, आई दीवाली रे
पुआ, पुड़ी, खीर, मलाई, लड्डू-पेड़े, रसमलाई रे,
बाहर की जगमग के आगे लगे फीकी मिठाई रे।

बचपन का वो बेगानापन, बड़ी खुशी बढ़ाई रे,
दीवाली पर थी वो मस्ती नहीं कोई कड़ाई रे
दीपावली क्यों ज्ञान नहीं, श्री राम का ध्यान नहीं;बस ज्योत जलाई रे,
बहुत वर्ष के बाद है जाना, बचपन में क्यों नहीं पढ़ाई रे।

आज समझ पचपन में आई, आई दीवाली रे,
शिक्षा में तब बड़ा झोल था, गोल में सब इतिहास-भूगोल में बड़ी खटाई रे
राम का मन्दिर भी बन पाया, थी हिंदू अंगड़ाई रे,
सर्वोच्च न्यायालय ने मुहर लगा, कर दी भरपाई रे।

राम-लला के दर्शन को अब जागे तरुणाई रे,
दीपावली का भाव समझ कर, खुशी मनाई रे।
राम-राज्य में राम हैं आए, अवध ने ज्योत जलाई रे,
अब तो पूरी दुनिया जानी, दीवाली है आई रे…॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”