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आखिर जातिवाद ?

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के ५८ फीसदी आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया। इसके बाद देश कें उच्चतम न्यायालय ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को १० फीसदी करने पर अपनी सहमति दी।अब छत्तीसगढ़ सरकार ने आदेशित १० प्रतिशत के विरुद्ध आरक्षण देने का प्रस्ताव पारित किया है, आखिर क्यों ?

इसी तरह प्रयागराज उच्च न्यायालय ने उप्र सरकार द्धारा दिए गए ओबीसी आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है। इस पर सरकार उच्चतम न्यायालय जा रही है, आखिर क्यों ?
जो भी स्थापित जनप्रतिनिधि, प्रतिष्ठित, चतुर-चालाक लोग इन वर्गों में आते हैं, वे ही इस आरक्षण का पीढ़ी दर पीढ़ी लाभ ले रहे हैं, बाकी भोले-भाले आदिवासी, दलित, पिछड़े परिवारों को अच्छी शिक्षा और संस्कारों से दूर रखने हेतु आरक्षण का लाली पॉप दिखाकर अपना मत बैंक तैयार करने मे लगे हुए हैं।
७५ साल बाद जहां आरक्षण समाप्ति की बात होनी चाहिए, वहाँ बढ़ाने की कोशिश प्रदेश और देश के लिए दुर्भाग्यजनक स्थिति नहीं तो और क्या है ?
आखिर न्यायालय की ‘सभी नागरिकों को समान अधिकार’ वाली जों मंशा संवैधानिक भावना के अनुरूप है, उससे छेड़-छाड़ करने पर सत्ता पक्ष और विपक्ष क्यों आमादा है ? क्या किसी भी सामाजिक, राजनीतिक संगठन को देश-हित की चिंता नहीं है ?
आखिर ऐसी स्थिति में राष्ट्रवादी, देशभक्त लोग या विभिन्न सामाजिक संगठन, विधायक व सांसद और विभिन्न आरक्षण विरोधी संगठन क्यों विरोध नहीं कर रहे हैं ?
१० वर्ष के लिए संविधान प्रदत्त आरक्षण को मत बैंक की कुटिल नीति के चलते बार- बार बढ़ाया जा रहा है, उच्चतम न्यायालय
के ५० फीसदी की सीमा को भी लाँघने का प्रयास किया जाता है, आखिर जन सामान्य कब तक इस तरह की घिनौनी राजनीति को सहन करता रहेगा ?
एक तरफ तो जातिवाद समाप्त करने का सभी राजनीतिक दल संकल्प लेते हैं, दूसरी तरफ मत के लिए जातिय आधार पर सारी योजनाएं बनाते हैं। एक तरफ तो देश की एकता, अखंडता और सामाजिक समरसता की बात करते हैं, दूसरी तरफ ऐसी व्यवस्था बनाते हैं, जिससे समाज में गृह युद्ध की स्थिति बनती जा रही है।
क्या इसी तरह अन्य राज्यों की समर्थ जातियों को आरक्षण का लाभ देना न्याय संगत है ? मंडल आयोग ने ओबीसी की जो परिभाषा दी थी, क्या उसके आधार पर वर्तमान में समीक्षा की जरूरत नहीं है ?

परिचय–प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।

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