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आज़ादी का अमृत घट

विजयलक्ष्मी विभा 
इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)
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७५ बरस की आजादी का अमृत और हम सपर्धा विशेष….

१८५७ के काल खंड से प्रारम्भ हुए १९४७ तक चले समुद्र मंथन में निकले आज़ादी के अमृत घट को लूटने के लिए राहु-केतु जैसे दानव ( देशद्रोही ) भी एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे थे। मंथन करते-करते एक दिन वह क्षण भी आ ही गया,जब आज़ादी का अमृत घट ऊपर आया और उस अमृत घट को लेकर स्वयं भारत माता देवताओं को अमृत बांटने को निकल पड़ीं और धोखा खा गईं। वे छिपे हुए राहु को पहचान न सकीं और उसे अमृत पिला दिया।
हमने आज़ादी का अमृत पान कर ७५ वर्षों मेें राहु- केतु की बाधाओं के बाद भी अपने देश को ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया,यह हमारी सफलता और बड़ी उपलब्धि है।
आज़ादी की इस लम्बी यात्रा में हमने गुलामी के अवशेष भी देखे और आने वाले नए भारत के सपने भी देखे। हमने आज़ादी का अमृत पान भी किया और अमृत के लिए होते भीषण संघर्ष भी देखे। जब हमने अपनी सत्ता को अपने हाथ में लिया तो हमें अपने कटे हुए पंखों को फिर उड़ान भरने का हौंसला देने में काफी वक्त लगा। ७५ वर्षों में अनेक राजनीतिक दल सत्ता में आए,सरकारें बदलीं, कानून बने और संशोधित हुए,परन्तु हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हुए। अमृत पान का आनन्द तो मिलता रहा परन्तु उद्देश्य पूरा नहीं हुआ।
आज़ादी के बाद हमारे देश में कांग्रेस दल सत्ता में आया। हमारी आज़ादी का संविधान २६ जनवरी १९५० को लागू हुआ और तब से हम आज़ादी का अमृत पान कर रहे हैं। निस्संदेह यह हमारा भाग्योदय था,हमारे देश का पुरुत्थान था। हमने अपनी खोई हुई शक्तियों को वापस प्राप्त किया था। सदियों पुरानी परतंत्रता के बाद जब आज़ादी मिली तो वह अमृत पान से कम नहीं थी। हमें जीवन जीने की ऊर्जा मिली। हमें हमारे मौलिक अधिकार मिले। अनेक दल सत्ता में बैठे। सभी ने चाहे-अनचाहे कार्य किए। हमारे सपनोंं का भारत साकार होने लगा,पर आजादी के अमृत के पीछे राहु और केतु की सेनाएँ भी सदैव लगी रहीं और हम उस मुकाम तक नहीं पहुँच सके,जो हमारी कल्पना में था।
आज जब एक योग्य सरकार सत्ता में आई है,और जिसने भारत को नया भारत बनाने का संकल्प लिया है और देश को ख़ुशहाल बनाने के लिए रात- दिन परिश्रम कर रही है तो उसके पीछे राहु सेनाएँ भी पूरी ताकत के साथ विरोध में लगी हुई हैं। फिर भी हम आज वर्तमान में अपना प्रगति पथ हासिल कर चुके हैं। अब हमें नए भारत के अपने सपने को साकार करने से कोई नहीं रोक सकता।
आज सच्चे अर्थों में हम भारत को अखंड भारत बनाने की दिशा में क़दम रख चुके हैं। प्रयास यह किया जा रहा है कि आज भारत में जाति भेद, साम्प्रदायिक भेद,अमीरी-गरीबी का भेद,कानून भेद व रंग भेद आदि किसी प्रकार का भेद न रहे। समूचे भारत के लोग एक कानून को मानें,एकमात्र इंसानियत के धर्म को अपनाएँ,वसुधैव कुटुम्बकम की नीति पर चलें और दूसरों को भी चलने की शिक्षा दें। भारत देश सच्चे अर्थ में विश्व गुरु बन कर विश्व की ताकत बने।
वर्तमान परिदृश्य में यह साफ दिखाई पड़ रहा है कि जितनी राहु-केतु कुचालें चल रहे हैं,हमारी नीति परक ताकतें बढ़ रही हैं। बाधाएँ आ रही हैं,आती रहेंगी परन्तु हम आज़ादी का अमृत पी रहे हैं,पीते रहेंगे और वह दिन दूर नहीं जब पूरा अमृत घट हमारे भारत देश के हाथ में होगा।

परिचय-विजयलक्ष्मी खरे की जन्म तारीख २५ अगस्त १९४६ है।आपका नाता मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से है। वर्तमान में निवास इलाहाबाद स्थित चकिया में है। एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,पुरातत्व) सहित बी.एड.भी आपने किया है। आप शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। समाज सेवा के निमित्त परिवार एवं बाल कल्याण परियोजना (अजयगढ) में अध्यक्ष पद पर कार्यरत तथा जनपद पंचायत के समाज कल्याण विभाग की सक्रिय सदस्य रही हैं। उपनाम विभा है। लेखन में कविता, गीत, गजल, कहानी, लेख, उपन्यास,परिचर्चाएं एवं सभी प्रकार का सामयिक लेखन करती हैं।आपकी प्रकाशित पुस्तकों में-विजय गीतिका,बूंद-बूंद मन अंखिया पानी-पानी (बहुचर्चित आध्यात्मिक पदों की)और जग में मेरे होने पर(कविता संग्रह)है। ऐसे ही अप्रकाशित में-विहग स्वन,चिंतन,तरंग तथा सीता के मूक प्रश्न सहित करीब १६ हैं। बात सम्मान की करें तो १९९१ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘साहित्य श्री’ सम्मान,१९९२ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा सम्मान,साहित्य सुरभि सम्मान,१९८४ में सारस्वत सम्मान सहित २००३ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की जन्मतिथि पर सम्मान पत्र,२००४ में सारस्वत सम्मान और २०१२ में साहित्य सौरभ मानद उपाधि आदि शामिल हैं। इसी प्रकार पुरस्कार में काव्यकृति ‘जग में मेरे होने पर’ प्रथम पुरस्कार,भारत एक्सीलेंस अवार्ड एवं निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त है। श्रीमती खरे लेखन क्षेत्र में कई संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में भी काव्य पाठ करती हैं। विशेष में बारह वर्ष की अवस्था में रूसी भाई-बहनों के नाम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कविता में इक पत्र लिखा था,जो मास्को से प्रकाशित अखबार में रूसी भाषा में अनुवादित कर प्रकाशित की गई थी। इसके प्रति उत्तर में दस हजार रूसी भाई-बहनों के पत्र, चित्र,उपहार और पुस्तकें प्राप्त हुई। विशेष उपलब्धि में आपके खाते में आध्यत्मिक पुस्तक ‘अंखिया पानी-पानी’ पर शोध कार्य होना है। ऐसे ही छात्रा नलिनी शर्मा ने डॉ. पद्मा सिंह के निर्देशन में विजयलक्ष्मी ‘विभा’ की इस पुस्तक के ‘प्रेम और दर्शन’ विषय पर एम.फिल किया है। आपने कुछ किताबों में सम्पादन का सहयोग भी किया है। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है।

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