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आजाद हो गए हम

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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‘मैं और मेरा देश’ स्पर्धा विशेष……..

आजाद हो गये हम,मैं और देश मेरा,
सदियों रही गुलामी,का मिट गया अंधेरा।

उन्नीस सौ सैतालिस,पंद्रह अगस्त के दिन,
भारत में हो गया था,आजादी का सबेरा।
आजाद हो गये हम…॥

मुगलों के बाद शासन,अंग्रेजों ने किया था,
वीरों का देश में दिल,हर ओर जल रहा था।
इक आग-सी लगी थी,हर ओर कहकंशा थी,
कुर्बानियों का ताँता,भारत में लग चुका था।
किस्मत जगी हमारी,शासक भी डर के भागा,
दुनिया कहे ये सारी,भारत है सबसे न्यारा।
आजाद हो गये हम…॥

है बेमिसाल अब भी,दुनिया में वो शहीदी,
अपने वतन कि खातिर,हँसकर ‘भगत’ ने जो दी।
सुखदेव,राजगुरु भी फांसी में झूल बैठे,
कोई न दे सका है,बलिदान ये कहीं भी।
आखिर में टूट बिखरी,बर्बरता जालिमों की,
वो रोक ना सके ‘वन्दे-मातरम’ का नारा।
आजाद हो गये हम…॥

‘भारत’ में जन्म पाकर,होता है गर्व मुझको,
वादी से प्रेम चादर,मिलती कहाँ किसी को।
मानें पिता को सागर,माता नदी को कहते,
ऐसी मिसाल जीवन,से सृष्टि की यहीं हो।
हर एक कण में करते,भगवान खुद बसेरा,
‘भारत’ सा कुछ नहीं है,गौरव यही हमारा।
आजाद हो गये हम…॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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