कुल पृष्ठ दर्शन : 397

You are currently viewing आज तक के सफर की प्रतीक है ‘घर की चिट्ठी’

आज तक के सफर की प्रतीक है ‘घर की चिट्ठी’

विभागाध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे की काव्य कृति विमोचित

इंदौर (मप्र)।

आज के दौर में जब व्हाट्सएप, ई-मेल और सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म के माध्यम से संदेश का आदान-प्रदान हो जाता है, उस समय पर पुराने दौर से लेकर अब तक के सफर को रेखांकित करती काव्य पुस्तिका ‘घर की चिट्ठी’ का आज विमोचन किया गया है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला की विभागाध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे द्वारा लिखित कविताओं की यह किताब नई पीढ़ी के लिए अतीत के दर्शन करने वाली होगी।
यह विचार इंदौर प्रेस क्लब के सभागार में डॉ. नरगुंदे की कृति ‘घर की चिट्ठी’ का विमोचन करते हुए अतिथियों ने व्यक्त किए। प्रारंभ में इस पुस्तक की रूपरेखा बताते हुए डॉ. नरगुंदे ने बचपन से लेकर अब तक के जीवन के सफर और उस सफर में चिट्ठी के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की चर्चा की।
पुस्तक पर चर्चा करते हुए विचार प्रवाह साहित्य मंच के अध्यक्ष मुकेश तिवारी ने कहा कि, कविताओं की किताब ‘घर की चिट्ठी’ के साथ डाकिए की याद आती है। चिट्ठी आज भी उत्सुकता पैदा करती है। ऐसी ही उत्सुकता इस किताब को लेकर भी है। लेखिका डॉ. नरगुंदे प्रयोगधर्मी है। किताब को पढ़ने पर पाठक को भी यह प्रयोगधर्मिता नजर आती है। इस किताब में गाँव की मिट्टी की सौंधी महक है, दीवार से लेकर टेम्पो तक का सफर शामिल है।
विशेष अतिथि पर्यावरणविद पद्मश्री जनक पलटा ने कहा कि, ‘घर की चिट्ठी’ से समाज को जिंदा कर दिया गया है। जब सारी दुनिया मोबाइल और ऑनलाइन पर है, तब घर की चिट्ठी का अपना एक अलग महत्व है। आज के दौर में कोई नहीं जानता कि, घर क्या होता है ? इस किताब में घर के वातावरण की बात की गई है । यह सीधे दिल में उतरने वाली किताब है। उन्होंने अपने बचपन में माता और पिता को लिखे जाने वाले पत्रों को याद किया।
मुख्य अतिथि उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी (मप्र) के निदेशक जयंत भिसे ने कहा कि, आजकल संवेदनाएं खत्म हो रही है। अब संवेदना प्रकट करने के लिए शब्द नहीं मिलते हैं। आँखों में संवेदना के भाव नहीं आते हैं। इस दौर में ‘घर की चिट्ठी’ किताब सभी को अपने घर-परिवार और पूर्वजों के साथ जोड़ने का काम करेगी।
अध्यक्षता करते हुए क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने इस किताब की पहल को आज की आवश्यकता बताया। उन्होंने कहा कि, इस तरह की किताबों के माध्यम से ही हम नई पीढ़ी को अतीत से जोड़ने का कार्य कर सकते हैं।
इस अवसर पर वामा साहित्य मंच की पूर्व अध्यक्ष अमरजीत कौर चड्डा, वरिष्ठ कहानीकार सीमा व्यास, वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. नीलमेघ चतुर्वेदी, पत्रकार राजेंद्र कोपरगांवकर, लक्ष्मीकांत पंडित, मराठी साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक अश्विन खरे, हिन्दीभाषा डॉट कॉम के सम्पादक अजय जैन ‘विकल्प’, डॉ. मनीष काले, डॉ. अनुराधा शर्मा, जितेंद्र जाखेटिया और प्रबल शर्मा प्रमुख रूप से मौजूद रहे।
प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत विश्वजीत सिंह, केशव शर्मा, गीतांजलि गोगटे, अभिजीत गोगटे और वैशाली सिंह ने किया। सधा हुआ संचालन अनुभूति निगम ने किया।