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आधुनिकता में दम तोड़ रही सर्कस की उम्मीद

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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सर्कस एक जीवंत कलाकारी प्रदर्शन करने का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है, जिसमें मनोरंजन के साथ कलाकारों की एकाग्रता, अनुशासन एवं आपसी सूझबूझ का प्रदर्शन देखने को मिलता है। इसमें थोड़ी-सी चूक जीवन-मरण में प्राप्त होती है। यह मानव जीवन में बहुत श्रेष्ठ पाठ सीखने का सुन्दर अवसर होता है।
आज के आधुनिक युग में बच्चे मोबाइल की दुनिया में गुम हो रहे हैं, जिससे आँखों में असर पड़ने के साथ दिमाग में भी असर पड़ने लगा है। ऐसे में रंगारंग कार्यक्रम की दुनिया भी ओझल होता जा रहा है। सर्कस जैसा मनोरंजन अब पुराने दिनों की बात हो गई है, ऐसे में इस कला को बचाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है, ताकि इसको बचाया जा सके।
सर्कस में कलाकार को भी काफी मेहनत करना पड़ता है और एक से दूसरी जगह जाकर भी लोगों का मनोरंजन करते हैं। जब मोबाइल की दुनिया नहीं थी और टेलीविजन भी प्राय: घरों में नहीं था, ऐसे में सर्कस ही एकमात्र मनोरंजन का सहारा रहता था। पहले जहां बाघ और बब्बर शेर के साथ हाथी जैसे जानवरों के सहारे सर्कस के यह कलाकार मनोरंजन करते थे, लेकिन आज सर्कस में जानवरों पर प्रतिबंध लगने से इन कलाकारों को अपनी कला के जरिए दर्शकों को बांधे रखने के लिए काफी मेहनत करना पड़ती है। कई शहरों में सर्कस में अफ्रीकन कलाकार भी हैं, जो अपनी कला के जरिए दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में लगे हुए हैं। ऐसे में जरूरत है सरकार और आम लोगों को कि, इस कला को बचाए रखें और कलाकारों के हौंसले को टूटने ना दें।
सर्कस के नाम से फिल्म और धारावाहिक भी बना, जहां कलाकारों के दर्द को दिखाया भी गया। जोकर जो अपने दर्द को भूल कर दूसरे को हॅंसाने में लगे रहते हैं, उस हँसी के पीछे भी उसका दर्द छुपा रहता है, लेकिन लोगों के मनोरंजन के लिए वह हॅंसाते रहता है। ऐसे में जरूरत है इस कला को बचाए रखने की, ताकि वह लोगों का मनोरंजन कर सके।

इसी लिए यूरोपीय सर्कस एसोसिएशन (ईसीए) सर्कस कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। ईसीए का मानना है कि सर्कस सार्वभौमिक है, जो अभिव्यक्ति को व्यापक विविधता प्रदान करता है। यूक्रेन में चल रहे युद्ध को देखते हुए दुनिया को आज सर्कस दिवस का उपयोग एवं मनोरंजन करने की और अधिक जरूरत है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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