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आया वसन्त चारुतम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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आया वसन्त चारुतम, कुसुमित हुआ दिगन्त।
हरित-भरित किसलय लसित, हुआ शीत का अन्त॥

गया पूस सर्दी गयी, स्वागत नवल वसन्त।
भव्या रम्या धरित्री, सुरभित सुमन दिगन्त॥

नव विहान की अरुणिमा, कुसुमित पुष्प सुगन्ध।
ऋतु वसन्त स्वागत हृदय, प्रेम भक्ति रस छन्द॥

अभिनंदन ऋतुराज की, चहुँ दिशि कोकिल गान।
वासन्तिक मधुमाधवी, खिले कुसुम मुस्कान॥

नव बसन्त मधुरिम छटा, हर्षित हिय मधुमास।
प्रीत युगल अनुराग मन, पीली कलसी पास॥

लाली गाल गुलाब सम, कुसुमित अधर पलास।
सुरभित तनु गुलदाउदी, लाजवाब मुखहास॥

अभिनंदन मधुमास में, अभिनव मृदुल वसन्त।
गन्धमाद प्रवहित पवन, सरसिज सुरभि अनन्त॥

प्रेम युगल क्रीड़ा प्रणय, थी मधुमास तलाश।
कलसी पीली देख अब, पूर्ण मिलन चिर आश॥

देख सजन सजनी हृदय, हुआ बाग गुलज़ार।
नैन शरारत दिल्लगी, ललुका-छिपी मनहार॥

कवि ‘निकुंज’ लखि सुन्दरी, चंचल चित्त अपार।
गजब असर मधुमास हिय, आये प्रीत बहार॥

आलोड़ित रतिराग मन, माघी मास बसन्त।
सतरंगी होली अभी, खुशियाँ शेष अनन्त॥

देख तितलियाँ मुदित मन, पुष्पित पुष्प पराग।
भँवरा साजन गूॅंजता, दिखा रहा अनुराग॥

तलाश प्रणय नव चाह मन, यौवन उठी तरंग।
बासन्ती मधुरिम हवा, हिलोरें देती अंग॥

कल-कल छल-छल सलिल सर, अरुणिम खिला सरोज।
तन्हाई यौवन युगल, नव बसन्त चहुँ ख़ोज॥

देख कोयलिया विरह प्रिय, कोयल मधुरिम कूज।
ऋतु वसन्त घायल सजन, सजनी विरही दूज॥

प्रीत युगल लखि विरह मन, चहके व्योम विहंग।
रोम-रोम यौवन मदन, विरहानल प्रिय अंग॥

बरसे बासंतिक घटा, विरह नयन जलधार।
कुसुमाकर कुसुमित कली, किया मधुप गुलज़ार॥

निकुंज हरित मधुमास में, खिला पुष्प मकरन्द।
लखि रमणी दोहा सखी, चारु प्रकृति आनन्द॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥