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आस्था का केन्द्र गुरुग्राम का शीतला माता मंदिर

डॉ.चंद्रदत्त शर्मा ‘चंद्रकवि’
रोहतक (हरियाणा)
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हमारे देश भारत में धर्म और आस्था का सदा ही वर्चस्व रहा है। यहां कण-कण में ईश्वर की अनुभूति की जाती है। यहां पर जब भी मानव जाति को महासंकट ने घेरा,तो कोई न कोई देवात्मा अवतरित हुई और धर्म की स्थापना की। देवताओं की पावन भूमि भारत में जन्म लेना ही स्वर्ग प्राप्ति माना जाता है। यहां के कोने -कोने,कण-कण में आस्था- विश्वास है।
भारत की पावन भूमि में हरियाणा भी एक ऐसा ही प्रांत है। यह वही प्रांत है,जहां पर महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता का उपदेश देकर मानव जाति को कर्तव्य-धर्म-कर्म भक्ति का उपदेश दिया था। यह गीता ही है जिसे विश्वग्रंथ कहा जा सकता है। मनुष्य जीवन के सभी उद्देश्यों को यह ग्रंथ स्वयं में समेटे हुए है।
हरियाणा के दक्षिण में गुड़गांव,जिसको आजकल गुरुग्राम भी कहते हैं,हरियाणा का एक प्रसिद्ध जिला है जहां ऊंची-ऊंची इमारतें हैं,वहां आस्था का भी केन्द्र बिंदु है। यह सर्वविदित है कि गुरूग्राम को शीतला माता के मंदिर से ही प्रसिद्धि मिली है। शीतला माता का मंदिर ऐसा भव्य मंदिर है,जो बहुत प्राचीन है। कहा जाता है कि यह मंदिर महाभारत काल से बना हुआ है किसी ना किसी रूप में यहां पर रहा हैl महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी कृति ही वास्तव में शीतला माता बताई जाती है। जिस समय गुरु द्रोणाचार्य वीरगति को प्राप्त हुए,तो लोगों के मना करने पर भी माता कृति ने स्वयं को आग लगाई और सती हो गई,जो यही स्थान हैl कहा जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य को यह मंदिर मिला हुआ था। वे यहां पर रहते थे और माता जी भी यहीं पर रहती थीl इस कारण से जब लोग माता कृति को रोक रहे थे तो उन्होंने भक्तों को आशीर्वाद दिया कि जाओ यहां पर एक मंदिर बनेगा और जो मेरे पास आएगा,उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
यहाँ इस प्रकार की मान्यता है कि यहां पर १-२ मंदिर और भी हैं,तो सीता माता का ही रूप हैl कहा जाता है कि श्री कृष्ण भगवान जब गुरुग्राम आते थे तो माता शीतला कृति उनका बहुत ही स्वागत करती थी,सत्कार करती थीl कृष्ण चुपचाप आते,लेकिन वह जान लेती थी कि किस रास्ते से आते हैं। इसलिए हर चौराहे पर उनका स्वागत करती। इससे खुश होकर भगवान श्री कृष्ण ने चोगानी माता को आशीर्वाद दिया कि सब जगह सब चौराहों पर तेरा वास होगा। इसके अतिरिक्त इस चोगानी माता का एक रूप मसानी माता भी हैl मसानी माता को तामसी और सात्विक दोनों रूपों में देखा जाता हैl मसानी माता को यक्षिणी भी कहा जाता है या माया रूप कहा जाता है।
कुछ लोग सात्विकता से तो कोई तामसिक रूप से इन पर भेंट चढ़ाते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं,लेकिन दोनों ही रूपों में यह फलदायी है। यहां आकर के भक्त स्वयं को धन्य मानते हैंl यहां एक तालाब भी है,सुना जाता है कि इसकी मिट्टी निकाल कर के उसको घर में ले आए और पानी में डालकर के नीम की पत्तियां डालकर के चर्म पर लगाने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। शीतलता प्रदान करने के कारण इसका नाम शीतला पड़ा,ऐसा माना जाता है। शीतला माता किस प्रकार मसानी और चोगानी बनी,इसका अधिक वर्णन नहीं है। हाँ,यह बात जरूर है कि यहां पर दो भाई रहते थे- एक का नाम पदार्थ,दूसरा सीहा था।
सीहा भक्ति में लीन रहता था,इस कारण से परिवार में विखंडन हो गया। एक रात को उसे सपने में माता दिखाई दीl उसने कहा कि यहां एक तालाब है उसमें एक मूर्ति मिलेगी,जो निकालकर मंदिर का रूप देना हैl उसने तालाब से मूर्ति निकाली थी,यानी शीतला माता ही थी। उसने एक मंडी बनवाई। बाद में अपनी पूरी जायदाद से मंदिर का निर्माण किया। और फिर एक बार जब माता प्रकट हुई तो सीहा ने वरदान मांगा कि अमर होना चाहता है। माता ने बहुत समझाया लेकिन नहीं माना और अंततः माता ने कहा कि मंदिर की पूजा के साथ तुम्हें याद किया जाएगा। इस प्रकार सीहा अमर हो गए। इस प्रकार अनेक पौराणिक कथाएं मिलती हैं मुख्य बात यह है कि,गुरु द्रोणाचार्य जी की पत्नी कृति के नाम से यह शीतला माई हुई। यहां पर लोग अपने बच्चों को मुंडन करवाते हैं तो बड़ा शुभ माना जाता हैl शीतला अष्टमी का भी विशेष महत्व हैl इसके अतिरिक्त नवरात्रों में भी लोग बहुत आते रहते हैं। यहां पर जो आता है कहते हैं कि कोई खाली नहीं जाता। या गूंगे बहरे का भी उपचार माँ के आशीर्वाद से होता है। कोई जीभ चढ़ाता है तो कोई माता को प्रसाद के रूप में यहां पर नारियल,चुन्नी,लड्डू और चुन्नी आदि। इसके अतिरिक्त अनाज भी चढाया जाता है। इस प्रकार यह स्थान बहुत ही पवित्र हैl यहां पर प्रतिवर्ष भक्तों की संख्या बढ़ती जाती है,यह आस्था और विश्वास का केन्द्र बिंदु है। भक्तों का शरण स्थल है। भक्तों को यहां आकर परम संतोष का अनुभव होता है। यदि आपको यहां आना पड़े तो आप माता शीतला के जरूर दर्शन करें।

परिचय–डॉ.चंद्रदत्त शर्मा का साहित्यिक नाम `चंद्रकवि` हैl जन्मतारीख २२ अप्रैल १९७३ हैl आपकी शिक्षा-एम.फिल. तथा पी.एच.डी.(हिंदी) हैl इनका व्यवसाय यानी कार्य क्षेत्र हिंदी प्राध्यापक का हैl स्थाई पता-गांव ब्राह्मणवास जिला रोहतक (हरियाणा) हैl डॉ.शर्मा की रचनाएं यू-ट्यूब पर भी हैं तो १० पुस्तक प्रकाशन आपके नाम हैl कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचना प्रकाशित हुई हैंl आप रोहतक सहित अन्य में भी करीब २० साहित्यिक मंचों से जुड़े हुए हैंl इनको २३ प्रमुख पुरस्कार मिले हैं,जिसमें प्रज्ञा सम्मान,श्रीराम कृष्ण कला संगम, साहित्य सोम,सहित्य मित्र,सहित्यश्री,समाज सारथी राष्ट्रीय स्तर सम्मान और लघुकथा अनुसन्धान पुरस्कार आदि हैl आप ९ अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल हो चुके हैं। हिसार दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण हो चुका है तो आपने ६० साहित्यकारों को सम्मानित भी किया है। इसके अलावा १० बार रक्तदान कर चुके हैं।

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