इंदौर (मप्र)।
सर्जना में संभावनाएं शेष रहनी ही चाहिए। १९२७ से निरंतर प्रकाशित ‘वीणा’ शताब्दी की ओर अग्रसर है। ‘वीणा’ ने इतिहास रचा है। इन वर्षों में डॉ. शांतिप्रिय द्विवेदी, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन, डॉ. श्यामसुन्दर व्यास सहित १४ कालजयी रचनाकार इसके सम्पादक रहे हैं। इन्होंने अपने-अपने समकाल को संबोधित किया है, पर अपने गौरवशाली सांस्कृतिक इतिहास की अनदेखी नहीं होने दी है। यह परम्परा वर्तमान सम्पादक राकेश शर्मा भी भली-भांति निर्वाह कर रहे हैं।
यह विचार वरिष्ठ कवि और लेखक डॉ. ओम ठाकुर ने व्यक्त किए। वे पत्रिका ‘वीणा’ के ९७वें स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। इस अवसर पर ‘वीणा’ के सम्पादक डॉ. राकेश शर्मा ने कहा कि, ‘वीणा’ का सम्पादन एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि इसकी एक गौरवपूर्ण स्थापित रीति-नीति है। इसमें महात्मा गाँधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, मुंशी प्रेमचंद, आचार्य शुक्ल, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर, चन्द्रसेन विराट, कृष्णदत्त पालीवाल जैसे कालजयी रचनाकार प्रकाशित होते रहे हैं और हमारे समकाल के सभी स्थापित लेखक भी प्रकाशित हो रहे हैं। इस तरह पत्रिका अपने अतीत और समकाल के बीच एक सेतु का निर्माण कर रही है।
शिक्षाविद डॉ. पुष्पेन्द्र दुबे ने कहा कि, पत्रिका को समकालीन बनाए रखने के उद्यम करते रहना चाहिए। उन्होंने ‘वीणा’ की विरासत का स्मरण किया।
प्रचार मंत्री हरेराम वाजपेयी ने बताया कि, प्रारंभ में श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर ने स्वागत वक्तव्य में ‘वीणा’ के ऐतिहासिक पक्ष पर प्रकाश डाला।
वीणा संवाद केन्द्र की संयोजक डॉ. वसुधा गाडगिल ने कार्यक्रम की भूमिका पर वक्तव्य दिया। अतिथि स्वागत सर्वश्री सदाशिव कौतुक, अनिल भोजे एवं रामचंद्र अवस्थी ने किया। इस अवसर पर घनश्याम यादव, प्रदीप ‘नवीन’, संतोष मोहंती, मुकेश तिवारी, हेमेन्द्र मोदी आदि गणमान्य एवं सुधीजन उपस्थित रहे। संचालन लेखिका डॉ. अंतरा करवड़े ने किया।
◾साहित्यिक यात्रा की प्रदर्शनी लगाई
इस अवसर पर ‘वीणा’ की अब तक की साहित्यिक यात्रा की प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसे दर्शकों ने बहुत रुचि के साथ देखा। अतिथियों ने ‘वीणा’ के अक्टूबर २०२३ अंक का विमोचन भी किया।