कुल पृष्ठ दर्शन : 338

You are currently viewing फूलों से जीना सीखा

फूलों से जीना सीखा

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
*****************************************

सुबह-सुबह मुस्कान लिए,
रोज नई पहचान लिए
ओस की ठंडी बूंदों को,
हँसते-हँसते पीना सीखा
मैंने फूलों से जीना सीखा।

कभी देवता के माथे पे,
कभी जवानों के कांधे पे
माला बन कर के शोभित हो,
अपने गम को सीना सीखा
मैंने फूलों से जीना सीखा…।

कभी महकता हूँ बागों में,
कभी लहकता हूँ रागों में
तन-मन की सुधि बिसराकर,
मेहनत का खून पसीना सीखा।
मैंने फूलों से जीना सीखा…॥

Leave a Reply