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यही हम बोलेंगे

लालचन्द्र यादव
आम्बेडकर नगर(उत्तर प्रदेश)

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इक बोगी में भर लो कई हजार,
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि,फंसा हुआ मझधार,
यही,हम बोलेंगे।
पटना जैसे स्टेशन पर,
भीड़ लगी है भारी।
मुंबई नगरी जाने वाले,
जुटे हुए नर-नारी।
इधर पसीने से भीगे हम सरकार,
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि,फंसा हुआ मझधार।
यही,हम बोलेंगेll

सीट ठसा-ठस भरी हुई,
अगल-बगल भी कसी हुई है।
शौचालय को खोल के देखा,
गठरी से सब पटी हुई है।
दरवाजे से भीड़ रही ललकार,
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि,फंसा हुआ मझधार,
यही,हम बोलेंगेll

मटरू बोले राम चरन से,
जरा जगह दो भाई।
इतने में हो गयी है भैया,
जम के ख़ूब लड़ाई।
जोड़ दिये होते,बोगी दो-चार,
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि,फंसा हुआ मझधार,
यही,हम बोलेंगे।

जिनको अंदर,नहीं मिली है,
जगह सुनो तुम भाई।
ऊपर वाली सीट बांध के,
चादर है लटकाई।
झुरमुट के अंदर में जैसे,
दुबकी हुई बिलाई।
लटके हम चमगादड़ जैसे यार,
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि,फंसा हुआ मझधार,
यही,हम बोलेंगे।

सरकारों से यही गुजारिश,
टिकट देख शर्माओ।
जितनी जनता टिकट खरीदे,
सबको सीट दिलाओ।
मेरा सपना कब होगा साकार ?
यही,हम बोलेंगे।
जीवन जबकि,फंसा हुआ मझधार,
यही,हम बोलेंगेll

परिचय–लालचन्द्र यादव का साहित्यिक उपनाम-चन्दन है। जन्म तारीख ५ अगस्त १९८४ और जन्म स्थान-ग्राम-शाहपुर है। फिलहाल उत्तरप्रदेश के  फरीदपुर बरेली में रहते हैं, जबकि स्थाई पता जिला आम्बेडकर नगर है। कार्य क्षेत्र-शिक्षक(बरेली)का है।  इनकी लेखन विधा-गीत,गजल,मुक्त कविता आदि है। रचना प्रकाशन विविध पत्र-पत्रिकाओं में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य-समाज को दिशा देना है। आपके प्रेरणा पुंज-गुरु शायर अनवर जलालपुरी हैं। एम.ए. (हिंदी) बी.एड. शिक्षित श्री यादव को हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। रुचि-कविता लेखन,गीत गाना है।

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