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ईश्वर की तलाश खुद में करें

ललित गर्ग
दिल्ली

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परमात्मा को अनेक रूपों में पूजा जाता है। कोई ईश्वर की आराधना मूर्ति रूप में करता है,कोई अग्नि रूप में तो कोई निराकार! परमात्मा के बारे में सभी की अवधारणाएं भिन्न हैं, लेकिन ईश्वर व्यक्ति के हृदय में शक्ति स्रोत और पथ-प्रदर्शक के रूप में बसा है। जैसे दही मथने से मक्खन निकलता है,उसी तरह मन की गहराई में बार-बार गोते लगाने से स्वयं की प्राप्ति का एहसास होता है और अहं,घृणा,क्रोध,मद,लोभ,द्वेष जैसे भावों से मन विरक्त हो पाता है। इंसान के भीतर बसे ईश्वर की अनुभूति एवं उसका साक्षात्कार अमूल्य धरोहर है,जो अंधेरों के बीच रोशनी,निराशा के बीच आशा एवं दु:खों के बीच सुख का अहसास कराती है।
जीवन उतार-चढ़ाव भरा है,कभी लोग छूट जाते हैं तो कभी वस्तुएं। खुद को संभाले रखना आसान नहीं हो पाता। समझ नहीं आता,करें तो क्या ? सीक्रेट लाइफ ऑफ वाटर में मैसे ईमोटो लिखते हैं,-“अगर आप उदास,कमजोर,निराश,संदेह या संकोच से घिरा महसूस कर रहे हैं तो खुद के पास लौटें,देखें कि वर्तमान में आप कहां हैं,क्या हैं और क्यों हैं। आप खुद को पा जाएंगे,बिल्कुल कमल के फूल की तरह,जो कीचड़ में भी पूरी खूबसूरती के साथ खिल उठता है।”
दुनिया का इतिहास ऐसे असंख्य लोगों से भरा पड़ा है,जिन्होंने विकट परिस्थिति और संकटों के बावजूद महान सफलता हासिल की और स्वयं में उस परमात्मा को पा लिया। कई बार व्यक्ति नासमझी के कारण छोटी-सी बात पर राई का पहाड़ बना लेता है,लेकिन यह विवेक ही है,जो गहनता से विचार करने के बाद किए गए कार्य में सफलता दिलाता है। विवेक का अर्थ है- चिंतन और अनुभव पर आधारित सूझ-बूझ। विवेक ऐसा प्रकाश है,जो भय,भ्रम,संशय,चिंता जैसे अंधकार को दूर कर व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है,इसीलिए चिंतन के महत्व को समझकर व्यक्ति को अपने अंदर सत्य की खोज करनी चाहिए।
जब-जब हम स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करने के लिये अग्रसर होते हैं तो हमें प्रतीत होता है कि किस तरह सत्य व्यक्ति का निर्माण करता है,अकल्पनीय तृप्ति प्रदान करता है और हमें विनम्र एवं ऋजु बनाता है। जीवन में सत्य और प्रेम आने से घृणा और भय दूर हो जाते हैं। सत्य और प्रेम का होना साधना के समान होता है,जिसमें धैर्य,साहस और संयम की आवश्यकता होती है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए इन गुणों की जरूरत होती है। अपने बिना तराशे हीरे जैसे व्यक्तित्व को छुपाएं नहीं,या उस पर सुपरमैन या सुपरवुमन का मुखौटा न लगाएं। आपका सत्य आपको आप जैसे हैं,वैसे ही पेश आने की इजाजत देता है। आप सत्य की ताकत को पहचानें। याद रखें,यह शब्दों के साथ शुरू होता है और बाद में यही शब्द आकर्षण का केन्द्र बनते हैं। यही शब्द आकार लेते हैं और आपका सच,सुख और सफलता बन जाते हैं। आपके सत्य की पहचान तभी है,जब आपका दिमाग,दिल और आत्मा एक स्वर में एक सुर में एक ही बात बोलें। सत्य की पहचान यही है कि आप भयमुक्त होकर अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में बढ़ें।
आज परिवार संस्था पर आंच आई हुई है,संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं,क्योंकि चतुर लोग अपना सारा समय दुनियावी ताम-झाम में लगा देते हैं लेकिन कभी नहीं सोचते कि घर पर बूढ़ी अम्मा, जो इंतजार में बाट जोहे बैठी है,वह कैसी होगी। बच्चे,जो आपके साथ हँसना-खेलना चाहते हैं,वह कभी आपको इस मिजाज में देखते ही नहीं कि कुछ नखरे दिखा सकें। पत्नी,जिसे दुनिया में सबसे अधिक इस बात की परवाह रहती है कि आप कैसे हैं,पर उसे भूल क्यों जाते हैं। जितनी खुशी,जितना प्रेम और आनंद आपको अपने परिवार से मिल सकता है,शायद ही कहीं ओर मिले,पर इस बात की अहमियत नहीं समझी जातीl अपना थोड़ा-सा समय भी स्वयं को,परिवार और समाज के जरूरतमंद लोगों को देकर देखिए,शायद जिंदगी बदल जाए। बाहर का खोल जितना भी मजबूत हो,भीतर को साधे बिना बात नहीं बनती। भीतर की गांठें,देर-सवेर उलझा ही देती हैं। रूमी कहते हैं,-“केवल परी कथाएं सुनकर ही गांठें नहीं खुलतीं। तुम्हें अपने भीतर काम करना होगा। बाहर ज्ञान के उफान पर उछाल मारती वेगवान नदियों की बजाय,भीतर आत्म-ज्ञान का कोई नन्हा-सा झरना होना बेहतर है।”
लोग मायावी और छद्म आनंद की तलाश में न जाने कहां-कहां भटकते रहते हैं और इस मृग-मरीचिका में सारे रिश्ते उदासीन होते जाते हैं। भला वह गर्मी उन रिश्तों में एकतरफा आए भी तो कहां से,रिश्ते तो हमेशा ही पारस्परिक होते हैं। बाद में जब जिंदगी के सारे भ्रम टूट जाते हैं,पराए-मतलबपरस्त लोग आपको अकेला छोड़कर दूर चले जाते हैं,तब बिल्कुल खाली-खाली-सा महसूस करते हैंl आप बिल्कुल वैसे ही होते हैं,जैसे कोई पेड़,जिससे परदेसी पंछियों का झुंड उसे अकेला छोड़कर उड़ गया हो। ऐसे में जब आपको परिवार और दोस्तों से भावनात्मक ऊष्मा की जरूरत पड़ती है,तो आप खुद को अकेला पाते हैं। सब होते हैं आपके आसपास,पर वह अपनापन नहीं होता और ऐसा नहीं है कि इस तरह का अधूरापन केवल किसी पुरुष की परेशानी है,तथाकथित आधुनिकता की होड़ में सहज मानवीय चेतना से दूर होती जा रही महिलाओं को भी इस तरह का अकेलापन बहुत सालता है। इन सब स्थितियों से इंसान को निजात दिलाने के लिये व्यस्ततम जीवन में कुछ पल ईश्वर से साक्षात्कार यानी आत्म-साधना में व्यतीत करना चाहिए।
बाँसुरी,जहां-तहां उग जाने वाले बाँस से बना वाद्य यंत्र है,पर हर बाँस,बाँसुरी नहीं बनता है। बाँसुरी केवल उसी की बनती है,जो खुद को पूरी तरह खाली कर लेता है। अहं,जिद और जलन की किसी भी गांठ को भीतर रखकर बाँसुरी बना ही नहीं जा सकता। दरअसल,हमारे संघर्ष,दु:ख व दर्द बाँसुरी के वो छेद हैं,जिनसे होकर गुजरते हुए हमारे किए काम मधुर गूंज पैदा करते हैं। बशर्ते,वे सब काम डूबकर किए हों,स्थिर मन और प्रेम के साथ किए गए हों। प्रबंधन गुरु दीपक चोपड़ा कहते हैं,-“श्रीकृष्ण अपनी प्रकृति के करीब जीने पर जोर देते हैं। उसी के अनुसार काम करना ही हमें अपनी पूरी संभावनाओं तक ले जाता है।” खुशहाल जीवन का यही एक मार्ग है और समय का तकाजा भी यही है कि हम उन सभी रास्तों को छोड़ दें,जहां शक्तियां बिखरती है,प्रयत्न दुर्बल होते हैं,उद्देश्यों को नीचा देखना पड़ता है और हमारा आत्मविश्वास थक जाता है। आज जरूरत है बाहर की बजाय भीतर की दुनिया में गोता लगाने की,ताकि आदमी सही अर्थ में आदमी ही नजर आए।

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