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ईश्वर की महिमा अपरम्पार

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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‘काके'(स्व. सुरेन्द्र सिंह चाहिल) हम पाँच भाइयों में तीसरे नम्बर का भाई,जो कर्मठ,कर्तव्यपरायण,हर प्रजाति के जीवन का रक्षक,और अपने समय का एक माना हुआ खिलाड़ी रहा। उन दिनों उसके चर्चे, तात्कालिक मध्यप्रदेश के सरगुजा क्षेत्र ही नहीं, विन्ध्य में भी हुआ करते थे।
अचानक ३१जुलाई १९७२ की एक काली शाम को महज २८ वर्ष की उम्र में वो एक हादसे का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया।
मुझे गर्व है कि,भाई की मृत्यु के ठीक २ वर्ष बाद एस.ई.सी.एल.कुरासिया कोलियरी (चिरमिरी) द्वारा ‘काके मैमोरियल फुटबॉल टूर्नामेंट’ का आयोजन किया गया,जिसमें भाग लेने के लिए हमें भी निमंत्रण मिला।
मैं(सबसे छोटा)और मुझसे बड़ा भाई ‘बाबे’ उन दिनों कटनी के पास विजय राघवगढ़ विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत सीमेंट कम्पनी में नौकरी करते थे। भाई के नाम से होने वाले टूर्नामेंट की खबर से ही हम बहुत उत्साहित हुए। हम दोनों भी खेलते थे तो अपने संपर्क से कुछ चुनिंदा खिलाड़ियों का एक दल बना कर ‘यंग स्टार्स’ दल की प्रविष्टी भेजी। टूर्नामेंट समिति द्वारा तयशुदा तारीखों में अच्छा प्रदर्शन कर लगातार पहला,दूसरा,तीसरा और चौथा मैच जीत कर फाईनल में पहुंच गए।
फाईनल में हमारी प्रतिद्वंदी टीम उन दिनों जबलपुर की मशहूर टीम ‘जबलपुर चैलेंजर्स क्लब’ थी।
९० मिनट के खेल में कोई परिणाम नहीं निकला। गोल-रहित ड्रा। १५-१५ मिनट के २ भाग (हाफ) में अतिरिक्त समय भी परिणाम रहित रहा। तब उस समय के नियमानुसार तय हुआ कि ट्राई ब्रेकर (दोनों टीमों के पाँच-पाँच पैनाल्टी शॉट्स) से निर्णय किया जाए।
पहला शॉट विपक्षी टीम को मिला,गोल हो गया। हमारी ओर से भी ‘बाबे’ ने पहला शॉट गोल में परिवर्तित किया। उसके बाद लगातार विपक्षी टीम के ४ और हमारी टीम के ३ शॉट चूक गए,जो या तो कीपर ने पकड़ लिए,या पोस्ट के बाहर निकल गए।
अब अपनी टीम से पाँचवाँ और आखरी शॉट मुझे लेना था। सामने अनुभवी गोलकीपर (किशनलाल), जो पिछले ७ वर्ष से मध्यप्रदेश की फुटबॉल टीम का प्रतिनिधित्व कर रहा था। मैं नौसिखिया,जीवन में पहली बार पैनल्टी शॉट,वो भी फाईनल के लिए निर्णायक। खैर…, मैंने भगवान को याद-प्रणाम किया,और भाई को याद करके धीरे से बॉल में किक किया।
मैं आज भी आश्चर्य करता हूँ कि,ऐसा लग रहा था जैसे किशनलाल जी मूक से खड़े देख रहे हैं,और बॉल को पकड़ कर कोई गोल के अंदर डाल रहा है।
यही ‘ईश्वर की अपरम्पार महिमा’ रही कि,भाई के नाम के टूर्नामेंट में सिर्फ २छोटे भाइयों ने अद्भुत गोल किए,और अपने भाई को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की।

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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