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उजाले का प्रतीक

डॉ.अशोक
पटना(बिहार)
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अंधेरे से उजाला,
सहर्ष स्वीकार है
दीपावली पूजन,
एक आभार है
टूटती श्रृंखलाओं में,
उजाले का अवतार है
जन-जागरण लाना,
इसका व्यवहार है।

पत्थर हो गई मन की भावनाएं,
दिल को कचोटती है
उन्नत खोज और प्रयोग से,
हमेशा सम्हलकर रहने में
सबसे पहले खड़ी होकर,
हम-सबमें जागृति भर कर
खुशियाँ और अत्यंत सुकून,
देने वाली ताकत बनकर
खुशबू भरी खुशियाँ देती है।

व्यावसायिकता पर प्रहार है,
उन्नत खोज और प्रयोग में प्रचुर
दिखता सुन्दर श्रंगार है,
यह पर्व एक उपहार है।

आओ हम-सब मिलकर,
उजाले के प्रतीक को
अन्तर्मन से जलाएं।
मायूसी से सनी हुई,
संसार में उजाले का प्रतीक बनकर
समग्र रूप में ज्योति पुंज बनकर,
हर्ष और उल्लास से
सनी हुई दुनिया को बसाएं॥

परिचय–पटना (बिहार) में निवासरत डॉ.अशोक कुमार शर्मा कविता, लेख, लघुकथा व बाल कहानी लिखते हैं। आप डॉ.अशोक के नाम से रचना कर्म में सक्रिय हैं। शिक्षा एम.काम., एम.ए.(अंग्रेजी, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, हिंदी, इतिहास, लोक प्रशासन व ग्रामीण विकास) सहित एलएलबी, एलएलएम, एमबीए, सीएआईआईबी व पीएच.-डी.(रांची) है। अपर आयुक्त (प्रशासन) पद से सेवानिवृत्त डॉ. शर्मा द्वारा लिखित कई लघुकथा और कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिसमें-क्षितिज, गुलदस्ता, रजनीगंधा (लघुकथा) आदि हैं। अमलतास, शेफालिका, गुलमोहर, चंद्रमलिका, नीलकमल एवं अपराजिता (लघुकथा संग्रह) आदि प्रकाशन में है। ऐसे ही ५ बाल कहानी (पक्षियों की एकता की शक्ति, चिंटू लोमड़ी की चालाकी एवं रियान कौवा की झूठी चाल आदि) प्रकाशित हो चुकी है। आपने सम्मान के रूप में अंतराष्ट्रीय हिंदी साहित्य मंच द्वारा काव्य क्षेत्र में तीसरा, लेखन क्षेत्र में प्रथम, पांचवां व आठवां स्थान प्राप्त किया है। प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के कई अखबारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।