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ऋतुओं का लेखा

एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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जिंदगी के हिसाबों जैसी,
ऋतुएं हिसाब करती हैं
तपती धूप में शीतलता,
का भी जवाब करती हैं।

ऋतुओं का लेखा-जोखा,
मनुष्य का बही खाता है,
कर्म बीज की खाद जैसी,
फसलों का फ़ल पाता है।

ऋतुएं तो आती-जाती हैं,
मानव मन घबराता है।
पाप पुण्य की धारा में,
सदा डुबकी लगाता है॥

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