शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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भौतिकवादी युग में सत्य उतने तक ही लोकप्रिय है, जितनी सत्यता की आवश्यकता है। सत्य सकारात्मक मनोभावों का सहायक संचारी साधन है, लेकिन व्यावहारिक रूप में जीवन में सत्य की सीमाएं निश्चित तौर पर परिस्थितियों पर आश्रित हैं। सत्य शब्द से उद्धृत सत् वह है जो सदा शाश्वत है, ईश्वर रुप है। और शाब्दिक अर्थ है ‘कल्याण भावना’ गांधी के मत में सत्य की आराधना ही भक्ति है।
गांधी जी के विचार से राजनीति में सत्य का प्रयोग अविस्मरणीय इतिहास साबित हो सकता है, किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात की भारतीय राजनीति में सत्य की अपेक्षा रखना मूलतः भूल-भूलैया या जंतर-मंतर में ही विचरण करने समान है। सत्य महान शक्ति तभी बन सकेगा, जनमानस में सत्य जीवन में खूब अच्छी तरह से रचा-बसा हो।
सत्य से पराजित होना एक स्वाभाविक स्पर्श और जीतना अलौकिक तेज समान है। राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता मानवीय जीवन को दृढ़संकल्प की छत्रछाया में जीने की प्रेरणा प्रदान करती है। गांधी जी की सत्यता बहुआयामी व्यक्तित्व का निर्माता है।
व्यक्ति, परिवार, समाज और देश-समस्त क्षेत्रों में सत्यनिष्ठा का होना आवश्यक है। आज मानवीय वातावरण सत्यपरक बातों से खिलवाड़ और हास्यास्पद बनने-बनाने की संक्रमण प्रवृत्ति से जूझ रहा है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के प्रति विश्वास करने में संदेह के कई घेरों से गुजरता है। यदि दूसरे पर विश्वास अथक प्रयास के बाद करे भी तो कुछ ही दिनों में आपसी व्यवहार से सत्य की बुनियाद कमजोर-सी दिखने लगती है। अति आकर्षण और धनार्जन की महत्वकांक्षा ने सत्य को भी उपभोक्ता मान लिया है।
असत्य व असंतोष की छाँव में बढ़ते हुए व्यक्तिपरक सामाजिक व आर्थिक शोषण की अपनी चरम सीमा विद्यमान है। हर व्यक्ति यही सोचता है ‘क्या मिलिए ऐसे लोगों से, जिनकी फितरत छुपी रहे, नकली चेहरा सामने आए, और असली सूरत छुपी रहे…!’ संक्षेप में कह सकते हैं- ‘सत्य मानव जीवन का बेहतरीन सूक्ष्म मानसिक रूप है और असत्य चार दिन साथ में चलने वाला पाँव।’ ‘सत्यमेव जयते’ दीवारें सजाने की वस्तु नहीं है, सत्य आचरण की ढाल है। सत्य मानसिक शांति व शक्ति है। सत्य ही मानव को तनावपूर्ण जीवन जीने की कला सिखाता है।
एक औषधि ही है ‘सत्य’। आइए, अपना एक कदम सत्य से उठाना बच्चों को सिखाते हैं और स्वयं के स्वाभिमान के लिए सत्य को सहजता से अपनाते हैं एवं अनेक रोगों से निजात पाते हैं। जीवन संघर्ष के पड़ाव पर विजय अभिलाषा की लौ सत्य की भूमि पर रचाते हैं।