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कब तक पालेंगे साम्प्रदायिकता का रोग !

ललित गर्ग
दिल्ली
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कांग्रेस और उसके नेताओं ने लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव आने से पहले अपनी राजनीति चमकाने के लिए समाज को धर्म और जाति के नाम पर बांटने का काम शुरु कर दिया है, लेकिन इस तरह की जहर उगलने वाली राजनीति के चलते धार्मिक सौहार्द बिगड़ रहा है। दल के ही एक बुजुर्ग नेता अजीज कुरैशी ने एक जलसे में शिरकत करते हुए सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाले कड़वे बोल बोले हैं। क्या उनका भाषण कांग्रेस की विचारधारा को पोषित करने वाला है या दल की उम्मीदों को पलीता लगाने वाला भी साबित हो सकता है। श्री कुरैशी ने कहा कि ‘हिन्दुस्तान में २२ करोड़ मुसलमान हैं और १-२ करोड़ मर भी जाएं तो कोई बात नहीं…।’ यह विडंबना ही है कि, ऐसे वक्त पर, जब देश और समाज में सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के हजारों लोग सड़कों पर शांति-मार्च निकाल रहे हैं, ऐसे वक्त में उनके नेता सामाजिक ताने-बाने को गहरी चोट पहुंचा रहे हैं। दूसरी ओर उसी मध्यप्रदेश में अपनी चुनावी संभावनाओं को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बड़े वादे व दावे कर रहे थे। क्या यह कांग्रेस का दोगला चरित्र नहीं है ? लगता तो यही है कि, कुरैशी कांग्रेस की परम्परा एवं सोच को ही आगे बढ़ा रहे हैं। वरना दल में ऐसी संकीर्ण एवं राष्ट्र-विरोधी सोच पर सख्त पहरेदारी होती तो क्या ऐसा दुस्साहस कर पाते ? निश्चित ही पार्टी ही साम्प्रदायिकता एवं जातियता को बल देती है, तभी एक जिम्मेदार नेता के ‘मुसलमानों ने चूड़ियाँ नहीं पहन रखीं’ जैसे बयानों पर पार्टी मौन रह जाती है। ऐसे एक समुदाय विशेेष को उकसाने वाले बयान निश्चित ही राजनीतिक प्रेरित होते हैं। जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जाएगा, समुदायों को भड़काने वाले बयानों में तीव्रता एवं उग्रता देखने को मिलेगी। चुनावी छाया में लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सामाजिक समरसता को धोने की कुचेष्टाएं बढ़-चढ़ कर देखने को मिलेगी।
वैसे, इस तरह के उन्मादी एवं विषवमन करने वाले बयानों से कितनी राजनीतिक लाभ की रोटियाँ सिकती है, कहा नहीं जा सकता, लेकिन इनसे सामाजिक समरसता निश्चित ही धुंधलाती है।
भले ही कुछ लोग जाति, धर्म के नाम पर समाज में घृणा फैलाते हों, पर इसी समाज में ऐसे लोग भी हैं जिनकी बदौलत देश और समाज में परस्पर प्रेमपूर्वक मिल-जुल कर रहने की भावना जिंदा है। जहां एक ओर देश में जाति और धर्म के नाम पर कुछ लोग नफरत फैला कर अपने कृत्यों से माहौल बिगाड़ रहे हैं, वहीं अनेक स्थानों पर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के सदस्य भाईचारे और सद्भाव के अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहे हैं। देश और समाज में सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के हजारों लोग सड़कों पर शांति-मार्च निकाल रहे हैं। उससे पहले नूंह, मेवात में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद दोनों समुदायों के लोग हाथ में हाथ डालकर जिस तरह खड़े हुए, उससे देश के अमनपसंद लोगों का यह यकीन फिर बहाल हुआ कि चंद सिरफिरे लोग अपनी हरकतों से इस देश के सामाजिक ताने-बाने को गहरी चोट नहीं पहुंचा सकते। ऐसे में श्री कुरैशी के आपत्तिजनक बयान की घोर भर्त्सना की जानी चाहिए।
देश में किसी भी संकीर्ण साम्प्रदायिकता को पंख फैलाने से रोकना जरूरी है। जिस तरह से श्री कुरैशी ने देश में अल्पसंख्यकों की उपेक्षा का हवाला देते हुए विषवमन किया, उसको सहजता में नहीं लिया जा सकता। संकीर्णतावादी लोगों को यह याद दिलाने की जरूरत है कि, भारत की तरक्की में सभी समुदायों के होनहार-समर्पित, अमन परस्ती लोगों का योगदान है लेकिन तथाकथित, अवसरवादी एवं साम्प्रदायिकतावादी अपने राजनीतिक लाभ के लिए देश तोड़क बातों से अपने-अपने समुदायों का ही नुकसान करते हैं। भारत को अपनी गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से लड़ने के लिए सामाजिक भाईचारे की आज पहले से कहीं ज्यादा आवश्यकता है।
आज भारत आगे बढ़ रहा है, तरक्की कर रहा है, गरीबी दूर हो रही है, शिक्षा का विस्तार हो रहा है, विकास की नई गाथाएं लिखी जा रही है, जिसका लाभ सभी को मिलेगा, मुस्लिम समुदाय भी उसमें बराबर का हिस्सेदार होगा। बावजूद इसके यह वाकई अफसोसजनक है। हालांकि, यह एक मजहब या बिरादरी की बात नहीं है, सभी धर्मों और बिरादरियों में ऐसे ख्याल के लोग मौजूद हैं। जरूरत उन्हें आईना दिखाते रहने की है कि, तरक्की एवं अमन का रास्ता खून-खराबे से नहीं, भाईचारे, सौहार्द और साझेदारी से होकर ही नए दरवाजे खोलता है।
हर जगह साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने में अपना हित साधने वालोें की भी कमी नहीं होती। इन चंद लोगों से ही पूरी कौम की बदनामी होने से बचाना होगा। सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने के लिए प्रत्येक देशवासी को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि, प्रेम से प्रेम, द्वेष से द्वेष, नफरत से नफरत, घृणा से घृणा और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है। हमें सोचना चाहिए कि हम अच्छे हिंदू, मुसलमान, सिक्ख या ईसाई अथवा किसी अन्य संप्रदाय के सदस्य होने के साथ-साथ अच्छे भारतवासी भी हैं। हमें यह जानना चाहिए कि, सभी धर्म आत्मिक शांति के लिए भिन्न-भिन्न उपाय और साधन अपनाते हैं। सभी धर्मों में छोटे-बड़े का भेद अनुचित ही माना गया है। सभी धर्म और उनके प्रवर्तक सत्य, अहिंसा, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते रहे हैं, इसलिए सच्चे धर्म के मूल में भेद नहीं है।

आमजन की जागरूकता एवं सहयोग से ही सांप्रदायिक अपराध एवं उन्माद को रोका जा सकता है। सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाली घटनाओं को प्रशासनिक स्तर पर सख्ती के साथ दबाया जाना चाहिए। सोशल मीडिया इस में आग में घी डालने जैसा कार्य करता है। आपत्तिजनक घटक पर निगरानी रखना आवश्यक है। लोगों की कट्टरतावादी सोच, उन्मादी बोल एवं कपोल कल्पित बातों से सावधान रहना चाहिए। अपने विवेक का सही इस्तेमाल करते हुए घटनाओं को सही परिप्रेक्ष्य में समझना लोगों के लिए आवश्यक है। यदि हम अपने राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधना चाहते हैं, दुनिया की एक महाशक्ति बनाना चाहते हैं तो इसके लिए आवश्यक है कि, हम सभी भारतीयों को अपना भाई समझें, चाहे वे किसी भी धर्म या मत को मानते हों। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का मंत्र उद्घोषित करने वाले राष्ट्र में ‘हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आपस में सब भाई-भाई’ का नारा ही हमारी राष्ट्रीय अखंडता को बलशाली बना सकेगा।